आवाज़ ए हिमाचल
कोहली, शाहपुर।
9 मार्च। जो देश या वहां के देशवासी अपनी संस्कृति व ऐतिहासिक विरासत और भाई चारे को अपनाते हैं और अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं वही लोग व देश तरक्की करता है। लेकिन आज की पीढ़ी विदेशी संस्कृति को अपना कर इस भाईचारे से दूर हो रही है।
उक्त प्रकटावा करते समाज सेविका एवम समर्पण संस्था शाहपुर की अध्यक्ष अनीता शर्मा ने कहा कि शांति, सदभावना, एकता व लोकतंत्र के लिए सांझी विरासतों को संजोने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि पूर्व में हमारी संस्कृति और सामान्य विरासतें इतनी शक्तिशाली रही हैं, जिसके माध्यम से ही समाज के सभी धर्मों के लोग प्यार, भाईचारे, समरसता, एकजुटता व शांति से लोकतंत्र को संजोए रखने व इसकी बुनियाद मजबूत करने हेतु बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन अब यह सब धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर है। जिन हालात में आज हम और हमारा समाज गुजर रहे हैं, सांझी विरासत से विमुख होते जा रहे हैं उसी का उदाहरण है कि आज नई पीढ़ी के तथाकथित सभ्य लोगों की दूरियां न केवल समाज से अपितु परिवार से भी बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि हमने हमारी ऐतिहासिक व समृद्ध परंपराओं को त्यागना प्रारंभ कर दिया है जो हमें एक दूसरे से जोड़े हुए थीं। इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि वह सुनहरी दौर कितना महत्वपूर्ण व मूल्यवान था।
उन्होंने कहा कि आज हम सांझी विरासत के छुटपुट प्रोग्राम ही देखते हैं जो कि कभी हमारी संस्कृति का हिस्सा हुआ करते थे। इससे लोगों को आय भी अर्जित होती थी। आचार विचारों के आदान-प्रदान हेतु लोग एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे। यह प्रथा आज भी कुछ जगहों पर विशेषकर किसानों और ग्रामीणों के बीच जीवित है। वह अपनी खेतीबाड़ी का व्यवसाय मिलजुल कर सांझा प्रयासों से करते हैं। इसी प्रकार कुछ और भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां आपसी भाईचारा कायम है। गीत- संगीत, खेलें, लोहडी और अन्य त्यौहारों पर बोली जाने वाली बोलियां सांझा विरासत का प्रतीक हैं। हमारी यही प्राचीन परंपराएं समाज को एकजुट रखने और रोजगार के अवसर सर्जित करने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने कहा कि विशेषकर लोहार, कुम्हार, औजारों को धार लगाने वाले और अन्य दस्तकारों व कारोबारियों को रोजगार की तलाश में क्षेत्र से दूर नहीं जाना पड़ता। वहीं क्षेत्रवासियों को भी रोजमर्रा की सेवाएं घर द्वार ही मिल जाती हैं। एक दूसरे के करीब होने के कारण बच्चों में भी कुसंगतियों से दूर रहने का भय बना रहता है जिससे कि वह नशों और एकांतवास जैसी बुराइयों से बचे रहते हैं। लेकिन कुछ अशांतिप्रिय, विघटनकारी, फिरकापरस्त, शरारती व स्वार्थी तत्वों एवं ताकतों को यह सब अच्छा नहीं लगता । वे समाज में आपसी भाईचारे, शांति, सद्भावना और सौहार्दपूर्ण माहौल व प्रजातंत्र के लिए खतरा बनी हुई हैं।