जसवाणी घटना ने किया शर्मसार,सार्वजनिक श्मशानघाट पर दलित व्यक्ति का नहीं हो सका अंतिम संस्कार

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आवाज़-ए-हिमाचल 
           अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर 
3 दिसम्बर : तकनीक के इस युग में आज जहां दुनियां कहां से कहां पहुंच गई है,वहीं आज भी इस समाज में कुछ ऐसे लोग है,जो अपनी घटिया मानसिकता का परिचय देकर इस सभ्य समाज को कलंकित कर रहे है।ऐसी ही एक घटना बिलासपुर जिला के उपमंडल घुमारवीं के जसवाणी गांव में घटी जहां पर स्वर्ण समुदाय के लोगों द्वारा एक दलित व्यक्ति के शव को सार्वजनिक शमशानघाट में जलाने नहीं दिया गया। और इस शव का बाद में 40- 50 फुट दूर झाड़ियों में अंतिम संस्कार करना पड़ा।  इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए उतनी कम है। सामाजिक तानेबाने में जहर घोलने वाले ऐसे असमाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि दोबारा इस प्रकार की घटनाओं की पुनर्वृति न हो। यह बात मानव सेवा ट्रस्ट सुंदरनगर के चेयरमैन सीआर बंसल ने प्रैस को जारी बयान
में कही। उन्होंने कहा कि पढ़े लिखे समाज में जहां पर समरसता के दम भरने वाले राजनीतिक दल केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए अपना उल्लू सीधा कर रहे है, तो क्या उन लोगों को ऐसे संवेदनशील मसलों पर आगे नहीं आना चाहिए। सीआर बंसल ने कहा कि इस घटना से एक बात तो तय हो गई है कि जिस संक्रमण के लिए बाबा साहेब डा. बीआर अंबेडकर ताउम्र लड़ते रहे, आज भी वह जिंदा है। हालांकि इस प्रकार के मसलों को लेकर शासन  द्वारा कड़े काननूों का प्रावधान किया गया है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया की लचकता के चलते न्याय नहीं मिल पाता है। उन्होंने दलित व्यक्ति के शव को सार्वजनिक शमशानघाट में जलाने से रोकने की घटना पर कड़ा संज्ञान लेने और उचित इन्साफ करने की मांग की है। सीआर बंसल ने बताया कि 28 नवंबर 2020 को ग्राम पंचायत दधोल के गांव जसवानी
तहसील घुमारवीं, जिला.बिलासपुर कुछ स्वर्ण जाति के लोगों ने एक दलित व्यक्ति के शव  के दाह संस्कार को रोक दिया, क्योंकि उस शमशानघाट पर स्वर्णों का अधिपत्य था। उन्होंने बताया कि जसवानी गांव में अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले यलगभग 80 वर्षीय बुजुर्ग का देहांत हुआ । परिवार के सदस्य पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए जसवानी नाला में ले गए। जसवानी नाला में  बने श्मशान घाट को ग्राम पंचायत दधोल की निधि से बनाया गया है। जब पीड़ित परिवार के सदस्य श्मशान घाट पहुंचे तो वहां पर स्वर्ण जाति के कुछ लोगों के द्वारा पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया गया। हैरानी का विषय है कि अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले पीड़ित परिवार को श्मशान घाट पर रखे गए पार्थिव शरीर को मजबूरन दोबारा उठाना पड़ा और लगभग 40- 50 फुट दूर झाड़ियों में पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करना पड़ा। यह घटना न सिर्फ मन को झकझोरने वाली घटना है बल्कि सभ्य समाज को भी शमर्सार करती है। प्रदेश  के मुख्यमंत्री, डीजीपी पुलिस तथा अजा जजा आयोग को इस बारे में कड़ा संज्ञान लेना चाहिए।

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