06 दिसंबर। बारह साल का लंबा सेवाकाल देने के बाद किसी स्थान को छोड़ना भावनात्मक तौर पर बड़ा जटिल कार्य होता है। लेकिन जीवन भी पानी की तरह है जिसका नाम केवल चलना है। यह बात एनटीपीसी कोलबांध परियोजना में बतौर मानव संसाधन विभाग और पीआरओ जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देने वाले प्रवीण रंजन भारती ने कही। यह भी संयोग ही है कि हिमाचल के बिलासपुर में सेवाएं देने के बाद पदोन्नत होकर भारती बिलासपुर (छतीसगढ़) के एनटीपीसी कोल प्रोजेक्ट में गए हैं। बिहार राज्य के जिला मधेपुरा के गांव गणेशपुर के प्रवीण रंजन भारती ने स्थानीय स्कूलों में पढ़ाई की तथा उन्होंने हिंदी में एमए किया है। बिलासपुर की कोलबांध परियोजना में स्थानीय लोगों, जिला प्रशासन, मीडिया और एनटीपीसी प्रबंधन के बीच अहम कड़ी का काम,
करने वाले प्रवीण रंजन भारती बहुत कम समय में दोनो ओर खासी पैठ बना चुके थे। उनकी दक्षता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोलबांध परियोजना में भूमि अधिग्रहण बिलासपुर, सोलन, मंडी और शिमला तक फैला था। ऐसे में इन्हीं जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों तथा मीडिया और स्थानीय लोगों को एक सूत्र में पिरोने का दायित्व प्रवीण रंजन भारती ने बखूबी निभाया। भारती बताते हैं कि बिलासपुर हिमाचल के लोग बहुत नेकदिल तथा मिलनसार है। विस्थापितों के हकों के साथ स्थानीय लोगों की समस्याओं को सुलझाते हुए बेहतरीन तालमेल बनाना भारती की दूरदर्शी सोच और मधुर भाषा का परिणाम था। एक दशक से ज्यादा समय तक रहने के बाद अपनेपन की भावना स्वत ही आ जाती है। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों द्वारा की गई।
हड़ताल को समाप्त करने में अहम रोल अदा किया। वहीं विकासात्मक गतिविधियों में स्थानीय जनता की भागीदारी सुनिश्चित कर उनके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाया। बालिका सशक्तिकरण अभियान को भारती द्वारा जमीनी स्तर पर आयोजित कर बेटियों के विकास में जबरदस्त भूमिका निभाई। इसके अलावा कोरोना काल में साथ लगते गांवों के हर घर को राशन, दवा आदि पहंुचाने के लिए इन्होंने दिन रात मेहनत की। वहीं प्रवासी श्रमिकों तथा उनके परिवारों को किसी प्रकार की दिक्कत पेश न आए इसके लिए भी पीआर भारती की दौड़ बरमाणा से लेकर एनटीपीसी परिसर के साथ लगते हर गांव तक लगी रहती थी। अब प्रवीण रंजन भारती बिलासपुर के लोगों के दिलों में जगह बनाकर दूसरे बिलासपुर में प्रेम, विकास और सहभागिता की ईबारत लिखेंगे।