सरैक ने कहा कि क्षेत्र के युवा नाचेगें कूदेंगे-जी भर बरसाएंगे इस गीत के गायन के साथ घर घर जाकर बारिश के लिए नृत्य करते थे ।
अत्यधिक सूखा पड़ने पर बारिश के लिए क्षेत्र में साधटू नाचने की परंपरा बदलते परिवेश में आज भी कायम है। गर्मियों के दौरान जब अत्यधिक सूखा पड़ने से फसलें नष्ट होने लगती है। ऐसे में किसान अपने स्थानीय काली देवी, जिसे ठौड़ माता कहते हैं, के मंदिर जाकर बारिश की गुहार करते हैं और अर्ध रात्रि को साधटू नृत्य करने का वादा करते हैं ताकि इंद्रदेव प्रसन्न होकर बरस जाए।इस नृत्य के लिए गांव के युवा भेष बदल कर साधू बनते है। तदोपंरात स्थानीय ठौड़ माता के मंदिर में आर्शिवाद प्राप्त करके पूरे गांव में घर घर जाकर साधटू नृत्य करते हैं।
साधटू पार्टी जब किसी घर के आंगन में ढोलक बजाते हुए प्रवेश करती है तो सबसे पहले गीत की शुरूआत जागो रे जागो बापूओ उबे रे अर्थात घर में सोए हुए परिवार को जगाते हैं। लोग बारिश की कामना से साधूओं पर पानी डालते हैं तथा भिक्षा भी देते हैं। उन्होने बताया कि भिक्षा में जो अन्न इत्यादि मिलता है उसे प्रातः ठौड़ माता के मंदिर में अर्पित किया जाता है। सरैक का कहना है कि बारिश के लिए यह प्रथा अतीत से निभाई जा रही है और साधटू नृत्य के उपरांत एक दो दिन में निश्चित रूप से बारिश होती है ऐसी लोगों में धारणा बनी हुई है ।यहा अलग अलग क्षेत्र मे साधटू नृत्य की अलग अलग पंरपरा है ।
विद्यानंद सरैक ने संबोधन में कहा कि आज के समय में जब युवा पीढ़ी का रुझान पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहा है और हमारे पुराने लोकनाटय विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में हेरिटेज संस्था द्वारा लोक उत्सव का आयोजन करना और उसका ऑनलाइन प्रसारण करना हमारे लोकनाटय करियाला स्वागो आदि का आम जनमानस के लिए प्रदर्शन करना एक सराहनीय कार्य है। आज कोरोना महामारी के चलते लोक कलाकार काफी अरसे से अपने घरों में ही है और उन्हें अपनी प्रस्तुति देने का अवसर बहुत कम मिल रहा है ऐसी स्थिति में भी हेरिटेज का इस लोक उत्सव का आयोजन करना एक बहुत अच्छा प्रयास है।।