आवाज़ ए हिमाचल
16 अगस्त।तमन्ना है देश के लिए खेलने की। मेडल जीतने की, लेकिन पिता की मौत ने सारे सपने तोड़ दिए। अब गरीबी की बेडिय़ों ने जकड़ रखा है। स्पोट्र्स हास्टल भी छूट गया। कोचिंग व रहना तो मुफ्त था, लेकिन पहाड़ जैसी चुनौती थी सिरमौर व धर्मशाला आने-जाने की। किराये के भी पैसों का जुगाड़ नहीं हो पाया। मां मनरेगा में दिहाड़ी लगाकर तीन बेटियों को पढ़ा रही हैं। चौथी बेटी की हाल ही में शादी हो गई है।यह दास्तां है शाहपुर हलके की प्रेई पंचायत के परसेल गांव की नेशनल हाकी खिलाड़ी रिया व रश्मि की। गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवार से संबंध रखने वाली हाकी खिलाड़ी 20 वर्षीय रिया व 17 वर्षीय रश्मि चार बार नेशनल खेल चुकी हैं। तीसरी बहन 15 वर्षीय नेहा दसवीं में पढ़ती है। स्लेटपोश मकान के एक कमरे में तीनों बहनें मां के साथ रह रही हैं। अक्टूबर 2016 में इन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब पिता प्रभात सिंह की बीमारी से मौत हो गई। सरकारी मदद के नाम पर उन्हेंं तब सिर्फ 10 हजार रुपये मिले थे। प्रभात सिंह की जमा पूंजी उनकी बीमारी पर खर्च हो गई, जो बचा था उसे मां कल्पना ने बेटियों की कोचिंग पर खर्च कर दिया। रिया स्पोट्र्स हास्टल माजरा (सिरमौर) व रश्मि साई धर्मशाला में हाकी की बारीकियां सीखती थीं। अब मां कल्पना मनरेगा में दिहाड़ी लगाकर बेटियों का पालन-पोषण तो कर रही हैं, लेकिन उन्हेंं स्पोट्र्स हास्टल नहीं भेज पा रही। होनहार बेटियां हाकी में अपना व देश का नाम रोशन करना चाहती हैं, लेकिन गरीबी बेडिय़ां बन गई है।