61 साल का हुआ विस्थापितों का शहर बिलासपुर

Spread the love

 आवाज़ ए  हिमाचल

                  अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर
09 अगस्त । साठ के दशक में आज ही के दिन देश को रोशन करने की खातिर बिलासपुर के लोगों ने अपने आशियाने खेत व खलिहान सब कुछ भाखड़ा बांध के लिए न्यौछावर कर दिया था। सोमवार को नया बिलासपुर शहर 61 साल का हो गया है, लेकिन भाखड़ा से मिले जख्म आज भी विस्थापितों के चेहरे पर साफ नजर आते हैं। भाखड़ा बांध का निर्माण होने के बाद आज के दिन नौ अगस्त, 1960 को बिलासपुर के पुराने शहर ने देखते ही देखते जल समाधि ले ली थी। घर-बार, खेत-खलिहान सब डूब गए थे और पुराने बिलासपुर शहर का नामोनिशान ही समाप्त हो गया था। नौ अगस्त, 1960 से लेकर 15 जनवरी, 1965 तक लगातार जल समाधि होती रही और घर उजड़ते रहे। 54 वर्षों की लंबी अवधि के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने उजड़े हुए आशियाने देखकर सिहर उठते हैं। इतने वर्षों के बाद भी बड़े-बुजुर्ग अपने विस्थापन के दर्द को भुला नहीं पाए हैं।
लोग उस ऐतिहासिक नगर को जल समाधि लेते जब याद करते हैं तो अतीत की यादें स्मृतियों के सागर में तैरती नजर आती हैं। उस लोमहर्षक क्षण को याद करते हुए बुजुर्ग आज भी इन्हीं पंक्तियों को गाते हैं कि चल मेरी जिंदे नवीं दुनिया बसाणी, डूबी गए घर बार आई गया पाणी…। बिलासपुर के बुजुर्ग बताते हैं कि यदि आज भी वही पुराना शहर होता तो नजारा कुछ और ही होता। ‘ये गलियां, यह चौबारा’ जहां सांझ के समय सभी दोस्त इकट्ठा होकर दिन भर की बातें साझा करते थे। अपने घरों को जलमग्न होते देखना एक दुखद अनुभव के साथ जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी। बुजुर्गों को आज भी चामड़़ू के कुएं और पंचरुखी का मीठा जल याद आता है। गोपाल मंदिर के भीतर वकील चित्रकार के दुर्लभ चित्रों को वे कभी भूला ही नहीं पाए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *