आवाज ए हिमाचल
19 अप्रैल। हिमाचल प्रदेश और केंद्र सरकार के फैसलों को लेकर विरोधात्मक बयान देने पर शिक्षक संगठनों और कर्मचारियों पर लगाई गई रोक का विरोध होना शुरू हो गया है। फेसबुक पर कांग्रेस सहित कई शिक्षक संगठनों के पेज पर सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है। नेता विपक्ष सहित कई कांग्रेस नेताओं ने सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने लिखा है कि यह पत्र कर्मचारियों से टकराव की शुरुआत है। उन्होंने उच्च शिक्षा निदेशक के इस पत्र को लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए तुरंत प्रभाव से वापस लेने की मांग की है। कर्मचारी संघों से बात के बजाय अनुशासनात्मक कार्रवाई लोकतंत्र की भावनाओं के खिलाफ है।
पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों और अध्यापक संघों से अभिव्यक्ति की आजादी छीनने वाले इस फरमान की घोर निंदा होनी चाहिए। उधर, शिक्षक संगठनों के फेसबुक पेज पर भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ खूब टिप्पणियां हो रही हैं। शिक्षकों का कहना है कि अभिव्यक्ति का अधिकार छीनना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार के इस फैसले को तानाशाही की शुरुआत भी बताया जा रहा है।
फैसला वापस नहीं हुआ तो सड़कों पर उतरेगी सीटू
सीटू राज्य कमेटी ने कर्मचारियों के सोशल, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में कर्मचारी विरोधी नीतियों पर बोलने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का कड़ा विरोध किया है। सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और महासचिव प्रेम गौतम ने कहा कि सरकार का यह निर्णय पूर्णतया तनाशाहीपूर्ण है तथा संविधान और लोकतंत्र विरोधी है। सरकार की यह अधिसूचना कर्मचारी विरोधी है। कर्मचारी आंदोलन को दबाने की साजिश है। इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने सभी ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी यूनियनों से आह्वान किया है कि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ एकजुट हों व इसका कड़ा विरोध करें। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए, अन्यथा कर्मचारी व ट्रेड यूनियनें इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे। कहा कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 19 का खुला उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है।