आवाज ए हिमाचल
15 मार्च। फैशन के इस दौर में जहां एक ओर बड़ी-बड़ी कंपनियां ब्रांड के नाम पर हजारों-लाखों रुपए में केमिकल से भरे व शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले रंगों से बने कपड़ों बना रही हैं। वहीं दूसरी ओर मंडी के शिल्पगुरू ने नई खोज करते हुए मंडी शिल्क व वनों में मिलने वाले फलों व जड़ी-बूटियों सेरंग बनाकर एक जैविक शॉल का निर्माण कर दिया । हस्तशिल्प की बेजोड़ कला व कारीगरी की मिसाल बनी इस साल को बनाने में दो हस्तशिल्पियों को छह महीने का समय लगा है। पूरी तरह से जैविक इस शॉल की कीमत एक लाख पांच हजार रुपए है।इस शॉल को अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में लगाई गई प्रदर्शनी में पेश किया गया है और यह सबके लिए आकर्षण का केंद्र बनी है। यह शॉल हैंडलूम की अब तक की न सिर्फ सबसे बेहतर कारीगरी मानी जा रही है, बल्कि फैशन के दौर में भी यह शॉल मशीनों के माध्यम से बनाई जाने वाले किसी भी बड़े ब्रांड की शॉल से कई गुणा बेहतर है।
खास बात यह है कि शॉल पूरी तरह से जैविक है। इस शाल में प्रयोग किया धागा मंडी सिल्क है। इसे बनाने में जो रंग प्रयोग किए गए हैं, वे अखरोट, हरड़, रतनजोत, अनारदाना के छिलके और मिजष्ठ आदि हर्बल जड़ी-बूटियों से लिए गए हैं। इन सभी जड़ी-बूटियों की मंडी जिला के वनों में भरमार है। 2015 में हैंडलूम के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए शिल्पगुरु के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मंडी के ओपी मल्होत्रा ने इस शॉल का निर्माण किया है। कृष्णा हैंडलूम से ओपी मल्होत्रा पिछले कई दशकों से हैंडलूम का काम करते आ रहे हैं। उन्होंने कुछ समय पहले ही अपने आप जड़ी-बूटियों से रंग निकालकर उनका प्रयोग हैंडलूम में करना शुरू किया। उनके ही सान्निध्य में मंडी के दो कारिगरों ने इस शाल को तैयार किया है। इसे बनाने के लिए छह माह से अधिक का समय लगा है।
शिल्पगुरु ओपी मल्होत्रा ने अभी तक ऐसे तीन शाल ही बनाए हैं, जिनमें से दो को बेच भी चुके हैं। एक शाल को इस प्रदर्शनी में लगाया गया है। उन्होंने कहा कि इस शॉल को बनाने के लिए मंडी सिल्क का प्रयोग किया गया है, जो कि पूरी तरह से जैविक है। इसके साथ ही इसके रंग भी पूरी तरह से जैविक हैं। इससे न तो शरीर और न ही पर्यावरण को कोई नुकसान है। हिमाचल में हिमाचली सिल्क व जैविक रंगों को लेकर बहुत काम किया जा सकता है। सरकार चाहे, तो इससे रोजगार के नए हजारों अवसर पैदा हो सकते हैं।