योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में दिया सड़क किनारे सभी धार्मिक स्थलों को हटाने का सख्त आदेश

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आवाज ए हिमाचल

15 मार्च। उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक स्थलों को हथियाने का खेल धर्म की आड़ में धार्मिक स्थलों का निर्माण कर कई वर्षो से चल रहा है। कई सरकारें आईं और चली गईं, पर किसी सरकार ने अपनी तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि कोर्ट के आदेश के बावजूद मामला लटका रहा। अब इस मामले में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं। अब धर्म की आड़ में अतिक्रमण और अतिक्रमण के सहारे बेशकीमती सरकारी जमीन पर कब्जा करने का खेल नहीं चलेगा। खासकर मुख्य मार्गो पर सड़क के किनारे और कहीं-कहीं तो सड़क के बीचों-बीच में कब्जा करके मंदिर, मस्जिद, मजार, दरगाह आदि बनाकर जो धंधा चल रहा है, उस पर लगाम लगेगी। ऐसे लोगों पर लगाम लगे, यह समय की भी मांग है।अदालतें भी समय-समय पर धर्म के नाम पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ आदेश पारित करती हैं, लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर वोट बैंक की सियासत के चलते इस समस्या का बड़े पैमाने पर समाधान नहीं हो पाया। योगी आदित्यनाथ सरकार ने सार्वजनिक स्थलों और सड़क किनारे अतिक्रमण कर बनाए गए सभी धाíमक स्थलों को हटाने का सख्त आदेश दिया है। अब यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस समस्या का समाधान हो जाएगा, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने सख्त फैसलों को जमीनी स्तर पर पूरा करने के लिए जाने जाते हैं। कोर्ट तो पहले ही कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए तमाम सरकारों को इसलिए फटकार लगा चुका है कि वे सड़क अतिक्रमण कर निर्मित धाíमक स्थल को हटवाने की इच्छाशक्ति नहीं रखती हैं।

अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने अधिकारियों को हाईकोर्ट के आदेश पर अमल करने को कहा है। गृह विभाग ने इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी कर दिया है। इसके साथ ही, यह भी आदेश दिए गए हैं कि तय समय में शासन को अवगत कराया जाए कि कितने अतिक्रमण कर बने धाíमक स्थलों को हटाया गया है। भले ही योगी सरकार ने यह निर्देश हाईकोर्ट के आदेशों के क्रम में जारी किया हो, लेकिन इसको लेकर सरकार की नीयत पर किसी को संदेह नहीं है। परंतु हकीकत यह भी है कि अतिक्रमण करके बनाए गए धाíमक स्थलों को हटाए जाने के योगी सरकार के आदेश के बीच अभी भी कुछ लोग धर्म की आड़ में अतिक्रमण या मरम्मत के नाम पर नए निर्माण कार्य करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इस ओर न तो जिला प्रशासन का ध्यान जाता है, न पुलिस या फिर नगर निगम अथवा विकास प्राधिकरणों की इस पर नजर पड़ती है।इस आदेश में कहा गया है कि यदि कहीं इस तरह का कोई निर्माण एक जनवरी 2011 या उसके बाद कराया गया है तो उसे तत्काल हटाया जाए। शासन ने जिलाधिकारियों से इसे लेकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट तत्काल अपर मुख्य सचिव गृह को सौंपने का निर्देश दिया है, जबकि विस्तृत रिपोर्ट दो माह में मुख्य सचिव को सौंपी जाएगी।

दरअसल पिछले कई वर्षो से यही देखा जा रहा है कि प्रदेश सरकारें अपनी सरकारी जमीन या फिर सड़क पर अवैध तरीके से बनाए गए धाíमक स्थलों पर किसी तरह की कानूनी कार्रवाई करने से बचती रही हैं। इस तरह जमीन कब्जा करने वाले सत्तासीन पार्टी का दामन थाम लेते हैं। लेकिन योगी सरकार का रवैया इस मामले में सख्त नजर आ रहा है। बीते कुछ वर्षो में जनता में भी जागरूकता आई है। अब जनता परिपक्व दिखती है। कोई धाíमक स्थल जिससे आम जनता को परेशानी होती है, उसे हटाने का पहले की तरह अंध-विरोध नहीं होता। प्रदेश में ही प्रयागराज, गोरखपुर, मुजफ्फरनगर सहित कई शहरों में सड़कों से ऐसे धर्मस्थल हटाए गए हैं। मुजफ्फरनगर में फरवरी 2018 में पुल निर्माण के लिए मस्जिद हटाई गई। इसके कारण पिछले एक दशक से फ्लाईओवर का निर्माण रुका था। प्रयागराज में सड़क किनारे बने लगभग एक दर्जन धार्मिक स्थलों को हटाया गया। कुछ जगह लोग खुद भी इसके लिए आगे आए।

हाईकोर्ट से आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में अवैध धाíमक स्थलों पर कार्रवाई की कवायद शुरू हो गई है। बात लखनऊ की करें तो यहां नगर निगम ने जिला प्रशासन को धाíमक स्थलों की सूची भेजी है। इस संबंध में ब्योरा तैयार किया जा रहा है। इसके बाद कार्रवाई शुरू की जाएगी। लखनऊ के एडीएम प्रशासन के अनुसार शहरी इलाकों में 160 अवैध निर्माण पाए गए हैं। बसपा राज में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती द्वारा वर्ष 2011 से पहले और उसके बाद अतिक्रमण कर बनाए गए धाíमक स्थलों की रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब योगी सरकार द्वारा 2016 में बनाई गई सूची के आधार पर यह पता लगाया जाएगा कि 2011 के बाद कोई नया धाíमक स्थल तो अतिक्रमण कर नहीं बनाया गया। वहीं, ऐसे धाíमक स्थलों की पहचान करने का काम प्रशासन ने भी शुरू कर दिया है। इसके लिए लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने एडीएम प्रशासन अमर पाल सिंह को नोडल अफसर बनाया है। वर्ष 2011 के बाद बने धाíमक स्थलों को सड़क से हटाया जाना है, जबकि इससे पहले बने धाíमक स्थलों को विस्थापित किया जाना है।हमारे देश में सड़कों के किनारे और रेलवे स्टेशन परिसर में धार्मिक स्थलों का निर्माण नई समस्या नहीं है। इन जगहों पर दशकों से ऐसा होता आ रहा है, लेकिन सरकार और प्रशासन के लचर रवैया अपनाने और स्थानीय लोगों के समर्थन के कारण इससे निपटना आसान नहीं है। वोटबैंक की राजनीति से जुड़े इस मामले पर जिस भी राज्य में अंकुश लगा है, अधिकांश में पहल अदालतों की ओर से ही की गई है। ऐसे में इस तरह के मामलों से जुड़े सभी पहलुओं पर समग्रता से विचार करना होगा और नियम-कानून बनाना होगा, ताकि भविष्य में इस तरह के निर्माण कार्य को समय रहते रोका जा सके।

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