आवाज ए हिमाचल
13 अक्टूबर।पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि राहुल गांधी तभी प्रधानमंत्री बन सकते हैं, जब इंडिया गठबंधन में मतभेद नहीं होंगे। कसौली में खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के अंतिम दिन खास बातचीत में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के अलावा और कोई नहीं है, जो गठबंधन की सरकार चला पाए। जिस तरह से इंडिया गठबंधन के हालात हैं, इससे भाजपा को हराना मुश्किल होगा। एकजुट होकर ही भाजपा का सामना कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हम चाहें भी तो भी पार्टी के ऊंचे पदों पर नहीं बैठ सकते क्योंकि हमें एक दो वोट ही मिलेंगे। पार्टी व अन्य नेता दिल से गांधी परिवार को चाहते हैं। ऐसे में हमें विकल्प पूछे जाते हैं, जिसमें हम तीन से चार नाम उन्हें सुझा देते हैं। उसी में से एक को बड़े पदों पर चुना जाता है। अय्यर ने कहा कि 2019 में जब कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई थी तो राहुल गांधी ने पद छोड़ दिया था और कहा था कि जिसे मर्जी अध्यक्ष बनाएं, मगर हम किसी को ढूंढने में कामयाब नहीं हुए। फिर उन्हीं के कहने पर मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। अपनी ‘रिजिजिंग राजीव गांधी लेगेसी फॉर इंडियाज फ्यूचर’ किताब पर चर्चा करते हुए उन्होंने राजीव गांधी की श्रीलंका नीति के पतन के लिए भारतीय प्रतिष्ठान की विफलताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सेना और खुफिया एजेंसियों ने उन्हें निराश किया, जबकि वह मिशन पर डटे रहे।मणिशंकर ने राजीव गांधी को फेलियर प्रधानमंत्री कहने के सवाल पर कहा कि वह भाजपा का फैलाया गया प्रोपेगेंडा था। उस समय मैंने सिर्फ इतना कहा था कि जिस तरह राजीव गांधी ने कहा था कि वह यूनिवर्सिटी में दो बार फेल हुए थे तो मोदी भी बीए और एमए की डिग्री दिखाएं या गुजरात विवि को कहें कि उनकी डिग्री सार्वजनिक करें। मगर उन्होंने नहीं दिखाई। अय्यर ने कहा कि मौजूदा समय में चीन के साथ जो हालात हैं, उसमें केवल चीन से दोस्ती ही भारत को दुनिया में नंबर एक बना सकता है। अगर डर में रहे तो भी कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि चीन और भारत अगर एक हो जाते हैं तो वह पूरी दुनिया में मिसाल कायम कर सकते हैं। अब मौजूदा सरकार को यह सोचना है कि उन्हें चीन से मुकाबला करना है या दोस्ती।अय्यर ने 1987 के समझौते और भारतीय शांति सेना की तैनाती का बचाव करते हुए कहा कि यह श्रीलंका के विघटन को रोकने और तमिलनाडु में अलगाववादी भावनाओं को भड़काने वाले संभावित फैलाव को रोकने का एक प्रयास था। राजीव जानते थे कि श्रीलंका में विघटन भारत में विघटन का कारण बन सकता है। समझौते में सेना की सहमति थी और इसमें कोलंबो के अनुरोध पर शांति सैनिकों को देश को स्थिर करने के लिए काम करने की परिकल्पना की गई थी, न कि कब्जा करने के लिए। अय्यर ने स्वीकार किया कि ऑपरेशन विफल रहा।अय्यर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव का विश्वास उनकी ताकत और कमजोरी दोनों था। कहा कि देश और विदेश में उनके सलाहकारों और सहयोगियों पर गलत भरोसा करना उनके लिए नुकसानदेह रहा। पंजाब में उन्होंने अकाली दल को सत्ता में लाने के लिए चुनाव कराकर कांग्रेस के जनाधार को खतरे में डाल दिया। असम में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, असम गण परिषद में तब्दील हो गया और समझौते के बाद सत्ता में आया। मिजोरम में दो दशक से चल रहा उग्रवाद तब समाप्त हुआ जब विद्रोही नेता लालडेंगा को मुख्यमंत्री बनाया गया।