आवाज ए हिमाचल
20 दिसंबर।हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने शुक्रवार को कर्मचारियों की भर्ती और सेवा शर्तों से जुड़े विधेयक को विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद पारित कर दिया। संशोधन विधेयक में नियमित और अनुबंध कर्मचारियों की सेवा शर्तों को अलग किया गया है। विधेयक पर चर्चा के दौरान सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हुई। चर्चा के बाद अपने वक्तव्य में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि इसे पारित करने का उद्देश्य यह है कि इससे एक त्रुटि दुरुस्त की जा रही है। अनुबंध नीति के अनुसार नियमित और अनुबंध सेवाओं में अंतर होता है। अनुबंध कर्मियों की सेवा शर्तों को नियमित से अलग तरीके से प्रबंधित करना आवश्यक है। उन्होंने तर्क दिया कि अनुबंध कर्मियों को नियमित कर्मियों के समान मानना राज्य के खजाने पर भारी बोझ डालेगा और नियमित कर्मियों की वरिष्ठता को भी प्रभावित करेगा।सुक्खू ने कहा कि त्रुटि के कारण नियमित कर्मचारियों को डिमोट करने की नौबत आ रही थी, जो नहीं आनी चाहिए। कुछ लोग कोर्ट जा रहे हैं और वहां से भी निर्णय आ रहे हैं कि लाभ पहले की तिथि से दिया जाए, ऐसे कर्मचारियों की संख्या ज्यादा नहीं है। विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायक त्रिलोक जम्वाल ने कहा कि 12 दिसंबर 2003 के बाद जो भी अनुबंध पर लगे हैं, सुप्रीम कोर्ट तक हारने के बाद उनके बारे में विधेयक लाया गया है। यह संशोधन पिछली तिथि से लागू हो रहा है। अनुबंध कर्मचारी इससे परेशान होंगे। उनकी पदोन्नति का क्या होगा। सरकार अगर इसे अगली तिथि से लागू करने की बात करती है तो भी इस पर विचार किया जा सकता है। इसे वापस लिया जाए।भाजपा विधायक जीतराम कटवाल ने कहा कि सरकारी मुलाजिमों की प्रदेश के विकास में अहम भूमिका होती है। सांविधानिक बैंच का निर्णय माना जाना चाहिए। चुनाव के दौरान वर्तमान सरकार के प्रतिनिधियों ने भी बहुत सी घोषणाएं की थीं। प्रावधान को पिछली तिथि से लागू न किया जाए। विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि अनुबंध कर्मचारी भी आयोग की ओर से ली गई परीक्षा के माध्यम से ही नियुक्त किए जाते हैं। यह कर्मचारी विरोधी निर्णय है। इसे प्रतिष्ठा का सवाल न बनाकर फैसले को वापस लिया जाए। भाजपा विधायक हंसराज ने भी कहा कि विधेयक पर पुनर्विचार होना चाहिए।
सीएम सुक्खू ने ये कहा
चर्चा के बाद अपने वक्तव्य में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि कुछ लोग कोर्ट में जाते हैं। कोर्ट से भी निर्णय आते हैं कि इस लाभ को पहले की तिथि से दिया जाए। यह एक त्रुटि है, उसे दुरुस्त किया जा रहा है। इस वजह से कितने ही कर्मचारियों को डिमोट करना होगा। कुछ कर्मचारियों ने ही यह मामला उठाया है। उन्होंने कहा कि इस त्रुटि की वजह से लाखों कर्मचारियों को डिमोट करने की नौबत नहीं आनी चाहिए। बता दें, 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने सदन के पटल पर हिमाचल प्रदेश सरकारी कर्मचारी भर्ती एवं सेवा की शर्तें विधेयक रखा। इसके तहत हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों को अनुबंध सेवाकाल का वरिष्ठता और वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा। साल 2003 से यह व्यवस्था लागू होने जा रही है। इस विधेयक को लाने के पीछे एक प्रमुख चिंता राज्य पर पड़ने वाला संभावित वित्तीय बोझ है। अनुबंध सेवाकाल का लाभ देने से कर्मचारियों को न केवल अतिरिक्त संसाधनों का भारी आवंटन करना पड़ेगा, बल्कि पिछले 21 वर्षों से अधिक समय से वरिष्ठता सूची में भी संशोधन करना होगा।विधेयक के अनुसार बिल का उद्देश्य नियमित सरकारी कर्मचारियों व अनुबंधित नियुक्तियों के हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। मुख्यमंत्री की ओर से स्थिति स्पष्ट की गई है कि यह विधेयक भारत के संविधान के अनुच्छेद-309 से अधिकार लेता है, जिसके तहत सार्वजनिक कर्मचारियों की भर्ती और सेवा शर्तों को नियंत्रित किया जाता है। हिमाचल में अनुबंध आधार पर नियुक्तियां 2003 में शुरू हुईं, जिसमें नियुक्ति पत्रों में सेवा शर्तों का स्पष्ट उल्लेख किया गया। कर्मचारियों को यह अवगत कराया गया था कि अनुबंध के तहत उनका कार्यकाल वरिष्ठता या नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले अन्य लाभों के लिए नहीं गिना जाएगा।