45 वर्ष के पश्चात नौकरी लगने वालों को भी पुरानी पेंशन योजना के अन्तर्गत लिया जाए: संजीव गुलेरीया

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आवाज़ ए हिमाचल 

स्वर्ण राणा, नूरपुर। डीडीओ अधिकारी अभी भी अपने विभाग के कर्मचारियों का एनपीएस काट रहे हैं और कर्मचारियों को पुरानी पेंशन के लिए शपथ पत्र के नाम पर तरह तरह से ‌तंग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री इसका संज्ञान लें, और ऐसे अधिकारियों को बर्खास्त करें जोकि सुक्खू सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को नजरंदाज कर कर्मचारियों को प्रताड़ित कर रहे हैं।

उक्त प्रकटावा न्यु पेंशन स्कीम रिटायर्ड कर्मचारी अधिकारी महासंघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष डाक्टर संजीव गुलेरीया ने आज यहां प्रैस को जानकारी देते हुए किया। उन्होंने कहा कि संविधान में जीवन के अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है”। प्रत्येक व्यक्ति को सीधे या स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से अपने देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश में सार्वजनिक सेवा तक समान पहुंच का अधिकार है। मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार है। इसके दायरे में जीवन, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है। इसके अलावा गरिमामय जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमें शामिल है।

डा. संजीव गुलेरीया ने कहा कि मुंबई हाईकोर्ट ने भी अपने एक अहम् फैसले में पुरानी पेंशन योजना को कर्मचारी के मौलिक अधिकार की श्रेणी में बताया है। डा. संजीव गुलेरीया ने मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू को हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने के लिए आभार व्यक्त किया।
गुलेरीया ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि उन सभी कर्मचारियों को भी बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन की तरह सम्मान जनक राशि अंतिम सैलरी का पचास प्रतिशत दी जाए, जिन कर्मचारियों-अधिकारियों का सरकारी सेवा में कार्यकाल ही कुल पांच बर्ष या इससे भी कम रहा है। ऐसे कर्मचारी जो पिछली सरकारों के कर्मचारी विरोधी रवैया के कारण सरकारी सेवा में पैंतालीस वर्ष के पश्चात नौकरी लगे हैं उनके साथ भी मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू न्याय करें उन्हें भी सम्मानजनक जीवन यापन करने के‌ लिए पुरानी पेंशन योजना के अन्तर्गत लिया जाए। उसके लिए सीसीएस रुल्स 1972 में चाहे संशोधन ही क्यों न करना पड़े।

इसके आलावा उन्होंने पूछा कि जो विधायक, सांसद या मंत्री कर्मचारियों-अधिकारियों की पेंशन के विरुद्ध हैं, तो वो पुरानी पेंशन व्यवस्था के तहत् पुरानी पेंशन का लाभ क्यों ले रहे हैं?

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