आवाज ए हिमाचल
12 फरवरी। हिमाचल प्रदेश में सेब की नई विदेशी किस्मों पर सौ साल पुराना रॉयल डिलिशियस भारी पड़ा है। पालमपुर स्थित केंद्रीय कृषि अनुसंधान परिषद के हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) और विवेकानंद मेडिकल संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों ने यह शोध किया है। शोध में सामने आया है कि गुणवत्ता के मामले में रॉयल डिलिशियस सेब का अन्य किस्में मुकाबला नहीं कर पाई हैं। इनमें रेड डिलिशियस, रेड चीफ जैसी किस्में भी पिछड़ गईं। हिमाचल समेत अन्य पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में यह अध्ययन सेब की पांच किस्मों पर किया गया है। शोध में पाया गया कि रॉयल डिलिशियस में फाइबर, फेनोलिक यौगिक और अन्य पोषक तत्व अन्य किस्मों से कहीं ज्यादा हैं। यह शोध एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपा है।
यह अध्ययन पश्चिमी हिमालय में रॉयल, रेड और गोल्डन डिलिशियस के अलावा रेड चीफ और रेड गोल्ड का व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले पोषक मूल्य, फेनोलिक सामग्री, एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि और बायो एक्टिव फेनोलिक घटकों को स्पष्ट करने के उद्देश्य से किया था। फल की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए सेब की विभिन्न किस्मों से प्राप्त पोमेस यानी भीतरी सामग्री का मूल्यांकन किया गया। रॉयल डिलिशियस पोमेस में अन्य सेब किस्मों की तुलना में घुलनशील 8.25 से 0.95 और अघुलनशील फाइबर 32.90 से 0.89 फीसदी के साथ कुल आहार फाइबर सामग्री 42.63 से 1.26 फीसदी अधिक थी।
सेब की भीतरी सामग्री के नमूनों को पॉलीफेनोल समृद्ध अर्क प्राप्त करने के लिए 70 फीसदी जलीय मेथनॉल के साथ निकाला गया। इसके परिणाम से पता चला कि रॉयल डिलिशियस पोमेस के हाइड्रोक्लोरिक अर्क में अन्य किस्मों की तुलना में उच्च फेनोलिक सामग्री है। रॉयल डिलिशियस में उच्च एंटीऑक्सीडेंट क्षमता होती है। आरपी-एचपीएलसी-डीएडी विश्लेषण से रॉयल डिलिशियस पोमेस में उच्च फेनोलिक सामग्री की भी पुष्टि की गई थी। एचपीएलसी विश्लेषण के परिणामों में फ्लोरिडजिन, क्वेरसेटिन, क्वेरिट्रीन और क्वेरसेटिन-3-ग्लूकोसिडस प्रमुख घटक के रूप में पाया गया है।
विदेशों से सेब की किस्में मंगवाने की होड़ को झटका
यह शोध विदेशों से सेब की नई किस्में मंगवाने की होड़ को भी एक झटका है। प्रदेश सरकार और राज्य के बागवान अमेरिका, इटली आदि देशों से रेड डिलिशियस और अन्य किस्में मंगवा रहे हैं जो गुणवत्ता में कमतर आंकी गई हैं। प्रदेश में 90 फीसदी से अधिक सेब उत्पादन परंपरागत रॉयल डिलिशियस किस्म का ही हो रहा है। इसे हिमाचल प्रदेश में अंग्रेजी शासन में बसे अमेरिकन सैम्युल इवांस स्टोक्स पहली बार लेकर आए थे। यह अमेरिकन आर्य समाजी बनने के बाद सत्यानंद स्टोक्स बनकर यहां बस गए थे।