हिमाचल : हमीरपुर के इस दंपति ने सरकार को बनाया अपनी संपत्ति का वारिस

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आवाज़ ए हिमाचल 

हमीरपुर, 23 मार्च। हमीरपुर के रहने वाले 70 वर्षीय डाक्टर राजेंद्र कंवर ने पत्नी के स्वर्गवास के बाद अपनी करोड़ो की प्रॉपर्टी सरकार के नाम कर दिक् है। वे आलीशान घर का नाम ‘कृष्णा राजेंद्र गवर्नमेंट ओल्ड ऐज होम रखना चाहते हैं।

डा. कंवर और उनकी धर्मपत्नी कृष्णा कंवर (रि. प्रिंसीपल) की कोई संतान नहीं हुई। दोनों ने इच्छा जताई कि जिस सरकारी नौकरी ने उन्हें सारी सुख सविधाएं दी, इतना मान-सम्मान दिया तो क्यों न उसे सरकार को ही बाइज्जत लौटाया जाए। इसलिए दोनों ने जो कुछ भी नौकरी के दौरान अर्जित किया था उसकी वसीयत बनाकर सरकार के नाम कर दी।

डा. कंवर और उनकी धर्मपत्नी (जो अब इस दुनिया में नहीं है) ने कई साल पहले ही निश्चय कर लिया था कि उनकी जो भी चल-अचल संपत्ति है उसे वे ऐसे बुजुर्गों के नाम कर जाएंगे जिनका कोई सहारा नहीं होता।

छह दिसंबर 2020 को डा. कंवर की धर्मपत्नी का स्वर्गवास भी हो गया पर उनके इस दृढ़ निश्चय की भनक किसी को नहीं लगी, लेकिन सोशल मीडिया के इस जमाने में भला चीजें कहां छिपती हैं। कुछ समय पहले खुलासा हुआ कि डा. कंवर ने बहुत पहले अपनी चल-अचल संपत्ति का वारिस सरकार को बनाते हुए अपने आलीशान घर को वृद्धाश्रम बनाने की इच्छा जताई थी, जिसका नाम वे ‘कृष्णा राजेंद्र गवर्नमेंट ओल्ड ऐज होम रखना चाहते हैं।  सूत्रों के अनुसार रेवन्यू डिपार्टमेंट की ओर से इसे लेकर प्रक्रिया भी मुकम्मल कर ली गई है।

जोलसप्पड़ में नेशनल हाई-वे के बिलकुल किनारे पांच कनाल पांच मरले जगह पर डा. कंवर का डबल स्टोरी आलीशान मकान है। इसके अलावा सर्वेंट क्वार्टर हैं, जहां एक दंपति उन्होंने अपनी देखभाल के लिए रखा हुआ है। साथ ही कुछ साल पहले खरीदी गई एक क्रेटा गाड़ी है। वह चाहते हैं कि उनके इस दुनिया के चले जाने के बाद इस गाड़ी का इस्तेमाल भी बतौर एंबुलेंस किया जाए। एचडीएम

डा. कंवर के अनुसार उन्हें सरकारी नौकरी से बहुत कुछ मिला चाहे वह पैसा हो या सम्मान। बकौल डा. कंवर मैं इसलिए सौभाग्याशाली हूं कि मेरा पेशा डाक्टरी रहा, जिसके चलते मैं आज भी मानवसेवा कर पा रहा हूं। मेरा मानना है कि जो व्यक्ति जिस भी फील्ड में होता है उसे अपनी जरूरतों के अलावा उससे संबंधित समाज के लिए भी कुछ कंट्रीब्यूट करना चाहिए, लेकिन यह सब इतनी खामोशी से होना चाहिए कि उसका पता इंसान के इस दुनिया से विदा होने के बाद ही चलना चाहिए।

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