आवाज़ ए हिमाचल
शिमला, 5 फरवरी। सैनिटाइजर के नाम पर सिरमौर के कालाअंब की एक कंपनी फर्जी तरीके से स्प्रिट की सप्लाई करती रही। कागजों में फर्जी तौर पर सैनिटाइजर के नाम पर स्प्रिट पपरोला कॉलेज और सीएमओ धर्मशाला को भेजा दर्शाया गया है। जांच में पाया कि यह स्प्रिट न तो इन्होंने मंगवाई और न ही आपूर्ति उन्हें पहुंचाई गई।
आशंका है कि इसकी आपूर्ति अवैध शराब बनाने के लिए कहीं अन्यत्र की गई है। तमाम दस्तावेजों को मिलाने के बाद आबकारी विभाग ने इस फर्म के खिलाफ साक्ष्य मिलने की बात की है और अब इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा रही है।
आबकारी विभाग के आयुक्त यूनुस के अनुसार कालाअंब में की कार्रवाई में यह पाया गया है कि कंपनी ने हैंड सैनिटाइजर की एक खेप पपरोला कॉलेज को भेजने की बात की है। इसकी कीमत 7.50 लाख रुपये है। इसी तरह इसी फर्म ने हैंड सैनिटाइजर की तीन खेप राजीव गांधी आयुष मेडिकल कॉलेज पपरोला के नाम पर भेजी हैं। इन सभी की कीमत 51 लाख रुपये है।
विभाग ने यह सारा डाटा ईवे बिल सिस्टम से निकाला है। जब इसकी पड़ताल करवाई तो संबंधित अधिकारियों ने लिखित में सूचित किया कि उन्होंने ऐसी कोई भी सप्लाई नहीं मंगवाई है और न ही प्राप्त की है। कुल अवैध सप्लाई 58.50 लाख रुपये की है, जिससे लगभग एक लाख बल्क लीटर स्प्रिट खरीदी जा सकती है। इससे लगभग 37 से 40 हजार पेटी शराब का उत्पादन किया जा सकता है। इस दौरान पाया गया कि इस फर्म ने सीएमओ धर्मशाला को हैंड सैनिटाइजर की चार खेप नवंबर व दिसंबर 21 में भेजी हैं। राज्य कर एवं आबकारी आयुक्त यूनुस ने शुक्रवार को शिमला में बताया कि विभाग ने जिला सिरमौर के कालाअंब स्थित एक औद्योगिक परिसर डच फॉर्मूलेशन में विभाग के संयुक्त आयुक्त राज्य कर एवं आबकारी उज्जवल राणा के नेतृत्व में निरीक्षण किया।
जिला मंडी स्थित गोवर्धन बॉटलिंग प्लांट में निरीक्षण के दौरान पाई गई अनियमितताओं की कड़ियों को जोड़ते हुए पाया कि इस कंपनी के परिसर में किसी भी प्रकार का कोई उत्पाद तैयार नहीं किया जा रहा था। इस इकाई के पास ड्रग अथॉरिटी की ओर से कोई लाइसेंस जारी नहीं है। इस यूनिट ने वर्ष 2020-21 में 8.06 करोड़ की परचेज ई वे बिलों में की है और लगभग 4.77 करोड़ की बिक्री दिखाई है। दोनों में कुल अंतर 3.39 करोड़ बनता है। जिसका कोई भी स्टॉक परिसर में नहीं पाया गया है।