आवाज़ ए हिमाचल
13 फरवरी।हिमाचल प्रदेश को सोमवार को सुप्रीमकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीमकोर्ट ने विकास से संबंधित 603 प्रोजेक्टों को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) और वन अधिकार कानून (एफआरए) के तहत मंजूरी दे दी है। इनमें से 138 को एफसीए और 465 को एफआरए के तहत मंजूरी मिली है। कई प्रोजेक्टों को शर्त और कुछ को बिना शर्त मंजूरी दी गई है। इससे पहाड़ में विकास रफ्तार पकड़ेगा और लंबे समय से अटके प्रोजेक्ट पूरे हो सकेंगे। यह मंजूरी लंबित प्रोजेक्टों के लिए है, नए प्रोजेक्टों की मंजूरी के लिए अभी सुप्रीम कोर्ट ही जाना होगा।
सोमवार को तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने इस संबंध में आदेश जारी किए हैं। इसके तहत वन मंडल अधिकारियों की शक्तियों पर लगी रोक हट गई है।कोर्ट ने मार्च, 2019 में एफसीए व एफआरए की अंतिम स्वीकृति देने पर रोक लगाई थी। इसके तहत डीएफओ की शक्तियों को भी रोक दिया गया था। वे एक हेक्टेयर तक की भूमि के हस्तांतरण की अनुमति दे सकते थे। उन्हें इसकी शक्तियां दी गई थी, लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक लगाई थी। इसी तरह से एफसीए के तहत आने वाले सभी मामलों पर भी रोक लगाई गई थी। इसके तहत राज्य और केंद्र सरकार अपने अपने क्षेत्राधिकार में स्वीकृति तो प्रदान कर रही हैं, लेकिन इसे अंतिम नहीं माना गया। अंतिम स्वीकृति के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेनी पड़ रही थी।
एफसीए के फेर में फंसा था विकास
राज्य में जल विद्युत प्रोजेक्ट, शिक्षण संस्थान, सड़कों व सिंचाई योजनाओं जैसे जनहित से जुड़े विकास कार्य लटक गए थे। राज्य सरकार ने इस मसले को कोर्ट के सामने प्रमुखता से उठाया और और अब इसके बेहतर नतीजे सामने आए हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया था।
हरे पेड़ों के कटान पर रोक
प्रदेश में हरे पेड़ों के कटान पर रोक है। सरकारी जंगलों में हरित कटान पर करीब चार दशक से रोक लगी है। केवल निजी भूमि से 10 साल बाद वन विभाग की अनुमति से भू-मालिक पेड़ काट सकते हैं। इसके लिए संबंधित बीट खुली होनी चाहिए। एक बीट 10 साल में एक बार खुलती है।
603 प्रोजेक्ट की बाधा दूर
हिमाचल सरकार महाधिवक्ता अशोक शर्मा सुप्रीमकोर्ट के फैसले से प्रदेश में लंबित पड़े 603 प्रोजेक्टों के निर्माण से बाधा दूर हो गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रयासों के कारण एफसीए और एफआरए के तहत मंजूरी मिली है। सुप्रीमकोर्ट ने पहले आंशिक राहत दी थी। एफआरए के केस डीएफओ देखेंगे और इनका निपटारा कर सकेंगे। नए मामलों की स्वीकृति के लिए अभी सुप्रीमकोर्ट ही जाना होगा।