आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल प्रदेश में सड़कों को 100 साल में कभी इतना नुकसान नहीं हुआ, जितना इस बार देखा गया है। इससे अकेले PWD महकमे को 2140 करोड़ रुपए की चपत लग चुकी है। कई जगह सड़कों का नामोनिशां तक मिट गया है। इस वजह से इन्हें दोबारा बनाने में सालों लग जाएंगे। सदी की इस भयंकर तबाही का जिम्मेदार इंजीनियर राज्य सरकार और लोक निर्माण विभाग (PWD) के साथ साथ पहाड़ों की जनता को जिम्मेदार मान रहे हैं। कई जगह पहाड़ों की बेतरतीब कटिंग भी इसकी वजह है। PWD इंजीनियरों ने सड़कों को अत्यधिक नुकसान के कारण गिनाए। PWD से रिटायर प्रमुख अभियंता (ENC) अशोक चौहान ने बताया कि सड़कों की लाइफ लंबी करने के लिए कलवट और ड्रेन दोनों का होना बेहद जरूरी है। मगर, प्रदेश की अधिकांश सड़कों पर जरूरत और गाइडलाइन के हिसाब से न कलवट है और न ड्रेनेज सिस्टम। इससे सारा पानी सड़कों पर बहने लगता है और बारिश में सड़कों के साथ-साथ लोगों के खेत-खलिहान, घर, सेब बगीचे और उपजाऊ जमीन भी बर्बाद हो रही हैं। अशोक चौहान ने बताया कि जो कलवट और ड्रेन बनी है, उन्हें साफ करने में बजट की कमी आड़े आ रही है, क्योंकि प्रदेश में सड़कों की लंबाई बढ़ती जा रही है और लगभग 40 हजार किलोमीटर लंबी सड़कें बन चुकी हैं। इस हिसाब से बजट में इजाफा नहीं हो पा रहा है। इससे ड्रेन और कलवट साफ नहीं हो पाते, जो सड़कों के टूटने का अहम कारण है।
उन्होंने बताया कि सड़क किनारे अतिक्रमण और नालों में घर बनाने की वजह से भी सड़कों को नुकसान हो रहा है। लोग सारा मलबा ड्रेन व कलवट में डाल देते हैं। इससे वह बंद पड़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि जहां डंगे टूट जाते हैं, वहां सड़क तो स्लिप हटाकर बहाल कर दी जाती है। मगर, डंगे दोबारा नहीं लगाए जाते। तबाही से बचने के लिए स्लिप वाली जगह की प्रोटेक्शन जरूरी है।