आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में घटिया दवाइयों के उत्पादन पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने मुख्य सचिव सहित प्रधान सचिव स्वास्थ्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इसके अलावा निदेशक स्वास्थ्य, राज्य दवा नियंत्रक और उप दवा नियंत्रक को प्रतिवादी बनाया गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 23 जून को निर्धारित की गई है। दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर पर अदालत ने जनहित में याचिका दर्ज की है।
खबर में उजागर किया गया है कि राष्ट्रीय औषधि नियामक और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने हिमाचल में निर्मित 12 दवा उत्पादकों सहित 34 दवा के नमूनों को घटिया घोषित किया है, जबकि एक नमूने को नकली पाया गया। नकली पाई जाने वालों में एक पशु चिकित्सा दवा भी शामिल है। हिमाचल से घटिया घोषित की गई दवाओं में एस्ट्राज़ोल इंजेक्शन, एस्ट्रीज़ो टैबलेट, मिसोप्रोस्टोल टैबलेट, एमोक्सिसिलिन कैप्सूल, पैरासिटामोल ओरल सस्पेंशन, फिनाविव टैबलेट, पैंटोप्राजोल और डोमपेरिडोन कैप्सूल, रैंटिडिन हाइड्रोक्लोराइड टैबलेट और लेवोसेटिरिज़िन और इबुप्रोफेन टैबलेट शामिल हैं।
जानवरों में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एनरोफ्लॉक्सासिन इंजेक्शन भी सूची में शामिल है। घटिया और नकली दवाइयों के निर्माता बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़, काला अंब के साथ-साथ पांवटा साहिब के औद्योगिक समूहों में स्थित हैं। इन दवाओं का उपयोग स्तन कैंसर के इलाज के अलावा रक्त में कैल्शियम के उच्च स्तर, बुखार, एसिड रिफ्लक्स रोग जैसे नाराजगी और सीने में बेचैनी, दर्द और एलर्जी और बालों के झड़ने जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इन दवाइयों की परख सामग्री की कमी, विघटन, वजन में एकरूपता, कण पदार्थ की उपस्थिति आदि जैसे मुद्दों की पहचान के गुणवत्ता मानकों में विफल रहे मुख्य कारणों के रूप में की गई है।