आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। प्रदेश के जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए वन विभाग नियमों में संशोधन करेगा। यह जानकारी अतिरिक्त सचिव पर्यावरण ने हाईकोर्ट के समक्ष दी। बताया गया कि 27 अप्रैल 2023 को अदालत के आदेशों की अनुपालना में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की गई।
अदालत को बताया गया कि जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए सरकार गंभीर है। जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए दो कंपनियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है। मैसर्ज पोंटिका एरोटेक लिमिटेड और मैसर्ज आयुर्वेट लिमिटेड कंपनी से जनवरी और फरवरी माह में कुल विक्रय की जानकारी मांगी गई थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई दो हफ्ते के बाद निर्धारित की है। पिछली सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया था कि राज्य सरकार की ओर से संबंधित कंपनियों को जैविक विविधता अधिनियम की धारा 7 के तहत नोटिस जारी किया जा रहा है, जबकि, अधिनियम की धारा 23 और 24 के तहत राज्य जैव विविधता बोर्ड से अनुमति लेने का प्रावधान है।
यदि कोई कंपनी जैविक संसाधनों को बिना स्वीकृति से इस्तेमाल करती है तो उस स्थिति में अधिनियम की धारा 56 के तहत एक लाख रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने अदालत को सुझाव दिया था कि राज्य सरकार की ओर से दिए जाने वाले नोटिस में ये सारे आदेश होने चाहिए। संबंधित कंपनियों को आदेश दिए जाएं कि प्रदेश के जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड से स्वीकृति ली जाए। अदालत ने सरकार को बाकी सुझावों की अनुपालना करने के आदेश दिए हैं।
पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में पूरी तरह से विफल रही है। यह अधिनियम राज्य को स्वयं के जैविक संसाधनों का उपयोग करने के लिए उनके संप्रभु अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। अधिनियम ने जैव संसाधनों तक पहुंच और विनियमित करने के लिए त्रिस्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया है। इसमें राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है।