हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन ने इंद्रु नाग मंदिर में की पूजा अर्चना

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आवाज़ ए हिमाचल 

धर्मशाला। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम धर्मशाला में 7 अक्टूबर को ICC वनडे वर्ल्ड कप का पहला मैच होना है। हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने मौसम साफ रहने और मैच के सफल आयोजन को लेकर पीठासीन देवता इंद्रु नाग के खनियारा स्थित प्राचीन मंदिर में हवन यज्ञ कर भंडारे का आयोजन किया। क्रिकेट स्टेडियम में किसी भी बड़े आयोजन से पहले HPCA पूजा अर्चना कर मौसम साफ रहने की मन्नत मांगती है। मंगलवार को एचपीसीए सचिव अवनीश परमार और अन्यों पदाधिकारियों के साथ खनियारा स्थित भगवान इंद्रूनाग की शरण में पहुंचे। खास बात ये है कि धर्मशाला में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनने के बाद पहली बार HPCA 2005 में भगवान इंद्रूनाग के मंदिर पहुंची थी। जब भी कोई बड़ा मैच धर्मशाला स्टेडियम में होता है तो वे विशेष रूप से यहां पूजा के लिए आते हैं। स्टेडियम का निर्माण नई तकनीक से हुआ है। इससे बारिश के 20 मिनट बाद मैदान सूखकर खेलने के लिए तैयार हो जाएगा। आउट फील्ड सुखाने के लिए हाईटेक मशीनें हैं। दोनों टीमों के खिलाड़ियों का प्रैक्टिस एरिया तैयार हो गया है। यहां विजिटर के प्रवेश पर प्रतिबंध है। स्टेडियम के भीतर इंडोर स्टेडियम में खिलाड़ियों के वार्मअप के लिए जिम और मशीनें हैं। मान्यता है कि इंद्रु नाग धौलाधार क्षेत्र के पीठासीन देवता है। इन्हें बारिश का देवता माना जाता है, जो भगवान इंद्र के साक्षात रूप हैं। प्रशासन भी किसी भी बड़े उत्सव से पहले यहां हाजिरी लगाता है। इंद्रु नाग देवता धौलाधार की तलहटी में बसे ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी आपदा से बचाव और समस्याओं के समाधान में भूमिका निभाता है। ग्रामीण भी इस देवता के हर आदेश का पालन करते हैं। इंद्रु नाग की विशेषता यह है कि इस मंदिर की पूजा अर्चना हिंदू पंडित करते हैं, लेकिन वाद्य यंत्र और शहनाई वादन का कार्य मुस्लिम परिवार करता आ रहा है। यहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ पूजा करते हैं।

खनियारा स्थित भगवान इंद्रु नाग मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। मान्यता है कि यहां वान पेड़ के नीचे भगवान के पदचिह्न मिले थे। उसके बाद यहां का एक राजा पहुंचा था। इसकी कोई संतान नहीं थी। भगवान इंद्रु नाग ने उसे सपने में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था। राजा ने भगवान इंद्रु नाग की पूजा अर्चना की और उसके अगले साल वह अपने बेटे सहित पहुंचा। पूजा अर्चना करने के बाद भगवान का मंदिर बनवाने के साथ इस क्षेत्र की जमीन को मंदिर के नाम कर दिया। इसके बाद से मंदिर में विशेष पूजा का दौर शुरू हुआ और यहां जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आया उसकी हर मनोकामना भगवान ने पूरी की।

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