आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। अपने संसाधन बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार द्वारा उठाए गए एक बड़े कदम को केंद्र सरकार ने असंवैधानिक बता दिया है। यह मामला हिमाचल की नदियों के पानी से बनने वाली बिजली पर वाटर सेस लगाने का है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री की सहमति से एक पत्र सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजा है। हिमाचल के मुख्य सचिव को 25 अप्रैल को ही यह पत्र मिला। इसे ऊर्जा मंत्रालय के डायरेक्टर आरपी प्रधान ने लिखा है। इसमें कहा गया है कि राज्य बेशक यह तर्क दे रहे हों कि वे अपने यहां पानी पर टैक्स लगा रहे हैं, लेकिन यह टैक्स उत्पादित बिजली पर लग रहा है और बिजली पर टैक्स लगने के कारण दूसरे राज्यों या ग्रिड में बिजली की कीमत बढ़ रही है। यह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। कोई भी राज्य ऐसा कदम नहीं उठा सकता, जिसका असर दूसरे राज्यों के लोगों पर हो। इस पत्र में हिमाचल के साथ-साथ उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में पहले लिए गए इसी तरह के फैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं।
ऐसे सभी राज्यों को वाटर सेस या एयर सेस लगाने जैसे फैसले वापस लेने के निर्देश भी इस पत्र में दिए गए हैं। गौरतलब है कि इससे पहले ऊर्जा मंत्रालय ने ही बिजली या पानी पर लग रहे टैक्स को देखते हुए विद्युत आबंटन के लिए एक नया ऑर्डर ऑफ मेरिट बनाने का फैसला लिया था। उसमें उन राज्यों को बिजली बाद में देने का प्रावधान था, जो अपने यहां बिजली या पानी पर टैक्स लगाते हैं। पावर सरप्लस हिमाचल इस फैसले से ज्यादा प्रभावित नहीं हो रहा था, लेकिन अब ऊर्जा मंत्रालय द्वारा भेजी गई चिट्ठी से स्थिति विकट हो गई है। हिमाचल हाई कोर्ट में वैसे ही वाटर सेस लगाने के फैसले के खिलाफ केस चल रहा है। केंद्र सरकार के इस पत्र से यह केस करने वाली विद्युत उत्पादक कंपनी को भी बल मिलेगा।
अब कोर्ट में ही तय होगा वाटर सेस का झगड़ा
अब वाटर सेस का मामला कोर्ट में ही तय होता हुआ दिख रहा है। हिमाचल सरकार ने हाल ही में हुए बजट सत्र में इस बारे में कानून बनाया था और इसे राजभवन से मंजूरी भी मिल गई है। इसके बाद जल शक्ति विभाग के सचिव को वाटर सेस के लिए कमिश्नर घोषित कर दिया गया है, लेकिन अब भारत सरकार के इस पत्र से और बिजली प्रोजेक्टों को भी कोर्ट में जाने के लिए मोटिवेशन मिलेगी।