सुक्खू सरकार के छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों पर छाया संकट

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। हिमाचल सरकार के छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्तियों पर संकट आ गया है। इनकी नियुक्तियों को लेकर भाजपा हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने असम और मणिपुर संसदीय सचिव अधिनियम को असांविधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाकर भाजपा हाईकोर्ट में कानूनी जंग लड़ेगी।

भाजपा सरकार के पूर्व उप महाधिवक्ता नरेंद्र ठाकुर ने बताया कि असम और मणिपुर संसदीय सचिव अधिनियम की तर्ज पर इन नियुक्तियों को चुनौती देने की तैयारी है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने असम और मणिपुर में संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए बनाए गए अधिनियम को असांविधानिक ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने बिमोलंग्शु राय बनाम असम सरकार के मामले में 26 जुलाई 2017 को असम संसदीय सचिव अधिनियम 2004 को असांविधानिक बताया था।

इस फैसले के बाद मणिपुर सरकार ने संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन और भत्ते और विविध प्रावधान) अधिनियम, 2012 को वर्ष 2018 में संशोधित किया। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट की ओर से मणिपुर सरकार बनाम सूरजा कुमार ओकराम के मामले में इस अधिनियम को भी असांविधानिक करार दिया गया। उन्होंने बताया कि हिमाचल में भी मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को हाईकोर्ट ने वर्ष 2005 में असांविधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था।

उसके बाद हिमाचल सरकार ने संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 बनाया। इसके तहत वर्तमान सरकार ने छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है। इनमें अर्की विधानसभा क्षेत्र से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया है।

नरेंद्र ठाकुर ने बताया है कि सभी मुख्य संसदीय सचिव लाभ के पदों पर तैनात हैं, जिन्हें प्रतिमाह 2,20,000 रुपये बतौर वेतन और भत्ते के रूप में अदा किया जाता है। उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत के निर्णय के अनुसार विधानपालिका को अदालत के निर्णय के खिलाफ अधिनियम पारित करने की शक्ति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार मानते हुए हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को हाईकोर्ट के समक्ष निरस्त करने के लिए याचिका दायर की जाएगी।

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