IIT मंडी ने बनाई वैक्सीन
आवाज़ ए हिमाचल
मंडी। सुअर के मांस से होने वाले खतरनाक कृमि (परजीवी) संक्रमण को रोकने के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक वैक्सीन (टीका) मनाने में सफलता प्राप्त की है। इस वैक्सीन से सुअर के मांस से संबंधित होने वाले कृमि संक्रमण के साथ-साथ टेपवर्म से संबंधित मिर्गी और मस्तिष्क संक्रमण को रोकने में भी सहायता मिलेगी। यह शोध स्कूल ऑफ बायोसाइंसेस और बायोइंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अमित प्रसाद के नेतृत्व में किया गया है। यह टेपवर्म आंत्रिक संक्रमणों के अलावा उच्च गंभीर मस्तिष्क संक्रमण के लिए भी जिम्मेदार है, जिससे मिर्गी भी होती है। इस शोध को पंजाब के दयानंद मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों एवं हिमाचल प्रदेश के सीएसआईआर हिमालयान बायोरिसोर्स प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है। यह शोध चुनौतीपूर्ण संक्रामक बीमारियों के लिए टीकों का उत्पादन करने के लिए एक नवीन, तीव्र एवं अधिक प्रभावी दृष्टिकोण देने में सफल रहा है। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पोर्क टेपवर्म को खाद्यजनित बीमारियों से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण के रूप में देखता है, जिससे दिव्यांगता के साथ ही जीवन का भी नुकसान होता है। विकासशील देशों में 30 प्रतिशत मिर्गी के मामलों में इसका योगदान है, जो गंदगी और स्वतंत्र रूप से घूमते-फिरते सुअरों वाले क्षेत्रों में 45 से 50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। उत्तर भारत में मस्तिष्क संक्रमण का प्रसार चिंताजनक रूप से 48.3 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है। अब तक इस संक्रमण के लिए एल्बेंडाजोल और प्राजिक्वेंटेल जैसी कृमिनाशक दवाओं का बड़े पैमाने पर सेवन कराया जा रहा है, किंतु इसमें सार्वजनिक भागीदारी में कमी और दवा प्रतिरोध के बढ़ते जोखिमों के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन अब आईआईटी द्वारा विकसित किया गया टीका इस संक्रमण से लडऩे में प्रभावी भूमिका निभाएगा। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी विधि विकसित की है, जिसमें प्रोटीन अध्ययन और जैव सूचना विज्ञान के संयोजन का उपयोग किया गया है। अपने इस शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अमित प्रसाद ने कहा इस शोध में सबसे पहले हमने टेपवर्म के सिस्ट तरल पदार्थ के विशिष्ट एंटीजन की पहचान की है, जो रोगियों के रक्त सीरम के साथ परीक्षण करके प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर करते हैं। इसके बाद हमने सुरक्षित और प्रभावी प्रोटीन टुकड़े खोजने के लिए प्रतिरक्षा सूचना विज्ञान उपकरणों का उपयोग करके इन एंटीजन का विश्लेषण किया है। हमने आकार, स्थिरता और प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ अनुकूल कारकों को ध्यान में रखते हुए एक मल्टी पार्ट वैक्सीन बनाने के लिए इन टुकड़ों को संयोजित किया है।
इस अनुसंधान में शोधकर्ताओं ने यह पाया कि टीका प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करता है और इससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित करने की उम्मीद की जानी चाहिए। यह शोध भविष्य में इसी तरह के परजीवियों के कारण होने वाली उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों के खिलाफ टीके विकसित करने के लिए एक आधार प्रदान करता है। इस आशाजनक वैक्सीन की सुरक्षा और इसके प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए अभी पशु और नैदानिक अध्ययन की आवश्यकता है।