आवाज ए हिमाचल
29 मार्च। मैसर्ज कैडबरी इंडिया लिमिटेड कंपनी ने असिस्टेंट कमिश्नर सेंट्रल एक्साइज के पास भी 30 जून 2009 को झूठी घोषणा यानी डेक्लेरेशन फाइल की थी। इनमें नई यूनिट के लिए एरिया बेस्ड करों की छूट मांगी गई थी। यह छूट 10 जून 2003 को जारी अधिसूचना के तहत मांगी गई थी। घोषणा में कहा गया था कि कंपनी ने नई यूनिट में कमर्शियल उत्पादन शुरू कर दिया है, जबकि नई स्थापित ही नहीं की गई थी। धोखाधड़ी करके पुरानी में ही उत्पादन बढ़ा दिया था। इसका पता सीबीआइ जांच से चला है। जबकि पहली यूनिट में 19 मई 2005 से उत्पादन आरंभ हुआ था।
दूसरी यूनिट के लिए अलग से भूमि भी अधिगृहित नहीं की। जांच के अनुसार कंपनी ने हिमाचल प्रदेश उद्योग विभाग से भी तथ्य छिपाए। इस विभाग के तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका जांच के दायरे में आ सकती हैं। हालांकि एफआइआर में किसी को भी आरोपित नहीं बनाया गया है। लेकिन विभाग ने जल्द ही रिकॉर्ड कब्जे में लिया जा सकता है।
सबसे पहले किसने रचा आपराधिक षडयंत्र
जांच कहती है कि सबसे पहले मैसर्ज कैडबरी इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) के तत्कालीन सहायक प्रबंधक मानव संसाधन एचआर सुभाष शर्मा, प्रबंधक एचआर भावना डोगरा, वित्त प्रबंधक वरुण रामनन, फैक्टरी प्रबंधक संजय, मैसर्ज दक्ष एसोसिएट एवं सलाहकार दीपक सिंह चंदेल ने फर्जीवाड़े का आपराधिक षडयंत्र रचा। कई प्रबंधक चंदेल से मिले और लाइसेंस प्राप्त करने के लिए रेट नेगोशिएट किए। संजय ने लिगल कंसलटेंट की सैद्वांतिक स्वीकृति अथवा सहमति प्राप्त की। इसके बाद दीपक सिंह चंदेल ने प्रोपराइटरी फर्म खोली। ये मैसर्ज दक्ष एसोसिएट के नाम से खोला गया। कंपनी ने सुमित शर्मा को सलाहकार बनाया। गौरतलब है कि कंपनी के खिलाफ सीबीआइ की दिल्ली यूनिट ने एफआइआर दर्ज की है। इसके आधार पर जांच आगे बढ़ाई जा रही है। इनमें कंपनी समेत 12 व्यक्तियों को आरोपित बनाया है। इनमें सेंट्रल एक्साइज के तत्कालीन अधिकारी, कंपनी के प्रबंधक, निदेशक शामिल हैं। इस मामले की प्रारंभिक जांच सीबीआइ की शिमला शाखा ने की थी।