सभी के लिए छूट पर योग्यता पूरी होने पर भी शास्त्री व भाषा अध्यापक टीजीटी पदनाम से वंचित

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आवाज़ ए हिमाचल

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर
26 नवंबर।हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् ने शास्त्री एवं भाषाध्यापकों की अनदेखी करने के लिए सरकार व शिक्षा विभाग से नाराजगी जाहिर की है। परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल, महासचिव अमित शर्मा, कोषाध्यक्ष श्री सोहनलाल, संरक्षक डॉ अरुण शर्मा, उपाध्यक्ष जंगछुब नेगी, अमरसेन, संगठन मंत्री योगेश अत्रि, प्रवक्ता शांता कुमार, आई टी सैल संयोजक अमनदीप शर्मा व सचिव विवेक शर्मा, शिमला के प्रधान दिग्विजयेन्द्र, बिलासपुर के राजेन्द्र शर्मा, सिरमौर के रामपाल अत्रि, ऊना के बलवीर, किन्नौर के बांगछेन नमज्ञल, हमीरपुर के सुनील धीमान, कुल्लू के कुलदीप शर्मा, तथा कांगड़ा के महासचिव राजकुमार, मण्डी के महासचिव बलवंत शर्मा, चंबा के महासचिव हेम सिंह ने जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा कि प्रदेश सरकार सभी वर्गों के लिए राहत दे रही है।

यहां तक कि जब रुसा के तहत सब्जेक्ट कॉम्बीनेशन में समस्या पैदा हुई और अभ्यर्थी टीजीटी भर्ती के लिए पात्र नहीं हुए तो सरकार व विश्वविद्यालय ने इसके लिए चार-चार कमेटियां गठित कर उन्हें छूट का प्रावधान करवाया तथा उसके बाद टीजीटी भर्ती के लिए उन्हें कैबिनेट से छूट दिलवाई गई। अब टीजीटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति के लिए फिर कैबिनेट से छूट दी गई।

लेकिन बड़े दुःख का विषय है कि शास्त्री व भाषाध्यापक जो योग्यता पूरी करते हैं उन्हें अभी तक टीजीटी पदनाम से वंचित रखा गया है। परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल ने कहा कि जब सभी समस्याओं का समाधान कमेटी गठित कर हो रहा है तथा कैबिनेट से फैसला लिया जा रहा है तो शास्त्री एवं भाषाध्यापकों के टीजीटी पदनाम के लिए कमेटी गठित क्यों नहीं की जा रही है और कैबिनेट में क्यों मामला लटकाया जा रहा है। माननीय मुख्यमंत्री जी व शिक्षा मंत्री जी की घोषणा को भी 15 महीने से ज्यादा समय हो गया लेकिन अभी तक शास्त्री एवं भाषाध्यापक जो एनसीटीई तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत इस पदनाम के योग्य हैं।

उन्हें जिस प्रदेश में दूसरी राजभाषा संस्कृत है इस टीजीटी पदनाम से अभी तक वंचित रखना संस्कृत के प्रति सरकार के उदासीन रवैये को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि शास्त्री अध्यापक पूरे विद्यालय की धुरी होते हैं तथा विद्यालय के हर कार्य में उनका योगदान रहता है लेकिन वरिष्ठ होने पर भी वे कनिष्ठ ही रहते हैं एक चपरासी भी पदोन्नति पाकर सम्मान जनक पद से सेवानिवृत्त होता है लेकिन शास्त्री व भाषाध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं इसका कारण टीजीटी पदनाम न मिलना है ।

अतः हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् प्रदेश सरकार के माननीय मुख्यमंत्री तथा माननीय शिक्षा मंत्री जी से निवेदन करती है कि आगामी कैबिनेट में तथा विधानसभा सत्र में शास्त्री व भाषाध्यापकों को टीजीटी पदनाम देकर अपनी घोषणा को पूरी करें। जिससे ये शिक्षक उचित सम्मान को पा सकें।

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