संवैधानिक अधिकारों के साथ संवैधानिक कर्तव्यों पर भी देना होगा ध्यान- सत्यपाल जैन

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आवाज़ ए हिमाचल 

          शांति गौतम ( बीबीएन ) 

11 अक्तूबर। भारत में न्याय की समृद्ध परंपरा रही है परिवार, कुटुंब, समाज, ग्राम पंचायत और धार्मिक संस्थाओं में भी विवादों का निपटारा होता रहा है वैकल्पिक विवाद समाधान न्याय व्यवस्था के लिए इनको खुद तैयार करना चाहिए और यहां से न्याय के सिद्धांतों को पहचाना जा सकता है। यह विचार वेबीनार के प्रमुख अतिथि सत्यपाल जैन, एडीशनल सॉलीसीटर जनरल आफ इंडिया ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि लोगों के मानसिकता पर काम करने के साथ-साथ और लोगों को संवैधानिक अधिकारों की बजाए संवैधानिक कर्तव्यों पर भी ज्यादा ध्यान देना होगा। जैन सामंजस्य पूर्ण समाज के लिए ‘वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था राष्ट्रीय सेमिनार’में बोल रहे थे।

जिसका आयोजन ‘‘डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू (म.प्र.)’’ में हुआ। प्रो. रूही पाल ने विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि वर्तमान न्याय व्यवस्था के साथ-साथ ‘अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेजोल्यूशन सिस्टम’की भूमिका भी होनी चाहिए  सीनियर एडवोकेट जी वी राव ने एडीआर के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने की वकालत की ताकि एडीआर को व्यवस्थित तरीके से पूरे देश में न्याय के लिए लागू किया जा सके, यह न्यायालयों की बैक लॉक को पूरा करने में सहयोग करेगा। प्रो. अफजल वानी ने वर्तमान न्यायिक व्यवस्था की जगह एडीआर को विकल्प तथा प्राथमिकता के आधार पर रखने पर जोर दिया।

प्रोफेसर बलराज सिंह मलिक ने अपने प्रस्तवना वक्तव्य में कहा कि हमारी न्यायिक व्यवस्था की चाहना सर्व शुभ और सबके लिए न्याय की कामना है। इस कामना को जमीन पर उतरने में अभी काफी सफर तय करना है । डा. डी के वर्मा ने कहा कि मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद से एक न्यायिक व्यवस्था को दुरुस्त करने में एक बहुत अच्छी उम्मीद की किरण मिली ह प्रो. सुरेन्द्र पाठक जी ने वेबीनार का संचालन किया और मानद प्रोफेसर बलराज सिंह मलिक ने अंत में धन्यवाद प्रस्ताव रखा।

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