संरक्षित भौगोलिक संकेत के रूप में “कांगड़ा चाय” यूरोपीय संघ के तहत पंजीकृत: सुखविंदर सुक्खू

Spread the love

आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि कांगड़ा चाय यूरोपीय संघ में संरक्षित भौगोलिक संकेत (GI) के रूप में पंजीकृत होने वाला देश का दूसरा उत्पाद बन गया है। उन्होंने कहा कि इससे कांगड़ा चाय के उत्पादकों के लिए यूरोपीय देशों में बिक्री का मार्ग प्रशस्त हो गया है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों में उत्पाद की गुणवत्ता, वास्तविकता व प्रतिष्ठा को पहचानने के लिए कांगड़ा चाय का यूरोपीय संघ के तहत पंजीकरण महत्वपूर्ण साबित होगा। उन्होंने कहा कि इसके पंजीकरण से कांगड़ा चाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, जोकि इसकी बिक्री के लिए वरदान साबित होगा। इस निर्णय से कांगड़ा जिले के पालमपुर, बैजनाथ, कांगड़ा व धर्मशाला, मंडी जिले के जोगिंदरनगर और चंबा जिले के भटियात क्षेत्र के ‘कांगड़ा चाय’ उत्पादकों को लाभ होगा।

कांगड़ा चाय अपने अनूठे स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसमें प्रचुर मात्रा में मौजूद पाइराजिन इसे अलग सुगंध प्रदान करता हैै। इसके अतिरिक्त, इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं जोकि एंटीऑक्सिडेंट्स, फेनोलिक कम्पाउंड, ट्रिप्टोफैन, अमीनो एसिड्स, थीनाइन ग्लूटामाइन और कैटेचिन से मिलते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांगड़ा चाय को वर्ष 2005 में पंजीयक भौगोलिक संकेतक, चेन्नई, द्वारा जीआई का दर्जा दिया गया था अब यूरोपीय संघ के साथ पंजीकरण के बाद कांगड़ा चाय की बिक्री बढ़ने की उम्मीद है जिससे राज्य के कांगड़ा चाय उत्पादकों को लाभ होगा।

ब्रिटिश काल में कांगड़ा चाय का निर्यात यूरोपीय बाजारों में किया जाता था। इसकी गुणवत्ता के कारण एम्स्टरडेम और लंदन के बाजारों द्वारा वर्ष 1886 से 1895 के बीच कांगड़ा चाय को विभिन्न पुरस्कार दिए गए। आज से पहले यूरोपीय संघ में पंजीकृत न होने के कारण कांगड़ा चाय की यूरोपीय बाजारों में बिक्री संभव नहीं थी, लेकिन अब पंजीकरण के पश्चात इस हिमाचली उत्पाद के लिए यूरोपीय देशों के बाजार भी खुल गए हैं।

सुक्खू ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार हिमाचल के पारंपरिक उत्पादों को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि स्थानीय कारीगरों और बुनकरों को लाभ पहुंचाने के लिए कई नवीन पहल की गई हैं। उन्होंने कहा कि कुल्लू शॉल, चंबा रुमाल, किन्नौर शॉल, कांगड़ा पेंटिंग, लाहौल के ऊनी मोजे और दस्ताने इत्यादि सहित राज्य के करीब 400 से अधिक पारंपरिक उत्पादों को आज जीआई का दर्जा प्राप्त है। इसके अतिरिक्त हिमाचली टोपी, सिरमौरी लोईया, मंडी की सेपुबड़ी, चंबा धातु शिल्प, किन्नौरी सेब और किन्नौरी आभूषणों को जीआई का दर्जा देना पंजीयक भौगोलिक संकेतक, चेन्नई, के पास विचाराधीन है।

सुक्खू ने यूरोपीय संघ के साथ कांगड़ा चाय के पंजीकरण की कठिन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने इस उपलब्धि में योगदान के लिए कृषि विभाग, हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT) पालमपुर और कांगड़ा वैली स्मॉल टी प्लांटर्स एसोसिएशन को भी बधाई दी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *