शिव भूमि बैजनाथ में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला

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आवाज़-ए-हिमाचल 

25 अक्टूबर : विजयदशमी पर पूरा देश लंकापति रावण के पुतले को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जलता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ में दशहरा पर्व पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता। यहां रावण के पुतले को जलाना महापाप समझा जाता है। यहां भगवान भोलेनाथ का हजारों वर्ष पुराना बैजनाथ मंदिर है। ऐसी मान्‍यता रही है यहां जिसने भी रावण को जलाया, उसकी मौत तय हाेती है। इस कारण यहां वर्षों से रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता।

दशहरा न मनाने की परंपरा यहां कई दशकों से है। लेकिन 70 के दशक में अन्य स्थानों में रावण के पुतले को जलाने की परंपरा को देखते हुए यहां भी कुछ लोगों ने दशहरा मनाना शुरू कर दिया। इसके लिए स्थान चुना गया बैजनाथ मंदिर के ठीक सामने का एक खुला मैदान। परंपरा शुरू हुई। लेकिन उसके परिणाम घातक होने लगे। जिसने पहले दशहरे पर रावण को आग लगाई, वो अगले दशहरे तक जीवित नहीं था। ऐसा एक बार नहीं दो से तीन बार हुआ। इस उत्सव में भाग लेने वाले लोगों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। फिर सबका ध्यान इस तरफ गया कि रावण तो भगवान भोलेनाथ का परम भक्‍त था। कोई देव अपने सामने भला अपने भक्त को जलता हुआ कैसे देख सकता है। फिर क्या था, यह परंपरा यहां बंद हो गई। आज भी यह कस्बा दशहरे के दिन शांत होता है।

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