आवाज़-ए-हिमाचल
5 नवम्बर : दीपों के त्योहार दीपावली में खुशियों की दीये जलते हैं। इस पावन उत्सव में जब ये दीये कृत्रिम (कैंडल एवं मोमवतियां) न होकर देश की मिट्टी से बने हों तो खुशियां चार गुना हो जाती हैं। दीपावली के कारण दीयों की मांग बढ़ रही है। मिट्टी के बर्तनों का इतिहास वर्षों पुराना है। अब गिने चुने लोग ही मिट्टी के बर्तनों का काम कर रहे हैं।
शाहपुर में डोहब के राजकुमार अपनी इस परंपरा को आज भी कायम रखे हुए हैं। वे आज भी मिट्टी के बर्तन व दीये बनाकर अपना घर चलाते हैं। वह क़रीब 40 साल से मिट्टी से बने बर्तनों को बेचते आ रहे हैं।
दीपावली उत्सव के लिए वे बहुत दिनों से दीये बनाने में जुटे हुए हैं। इस वर्ष उन्होंने दीपावली के लिए 10 हजार से अधिक दीये बना दिए है। जिसमें की 2 रुपये से लेकर 50 रुपये तक के दीये भी हैं। वह ग्राहकों को उनकी मांग अनुसार दीये और मिट्टी से बनी और बस्तुए बेचते हैं।
इससे पहले भी थोड़े कम दीये बनाते थे, क्योंकि चाइनीज समान के कारण लोग मिट्टी के दीये खरीदना कम पसंद करते थे, लेकिन चाइनीज सामान के बहिष्कार की बात के चलते इस वर्ष उन्होंने अधिक दीये बनाए हैं।
राजकुमार कहते हैं कि कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में काम में मंदी आ गई थी, जिसमें आर्थिक जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा। लेकिन अब जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी है। इनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन जैसे सुराही, घड़े, दीये, कुजे, गुल्लक इत्यादि के डिजाइन ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं।