वीआईपी नंबर आवंटन पर हिमाचल हाईकोर्ट सख्त, पूछा- ऐसा कौन सा पुण्य का कार्य है जो इन नंबरों के बिना नहीं हो सकता

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। सरकारी वाहनों को वीआईपी नंबरों से सुसजित करने के लिए सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ डालने के कारण हिमाचल हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव से शपथ पत्र के माध्यम से पूछा है। अदालत ने सरकार द्वारा नंबर आबंटन पर अपनाई जा रही दोहरी नीति पर कड़ी प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए अपने आदेश में कहा कि ऐसा कौन सा पुण्य कार्य है जो सरकारी गाड़ी में बिना वीआईपी नंबर के पूरा नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति अजय मोहन गोएल ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि एक तरफ तो एक से लेकर दस नंबर तक की कीमत निर्धारित की गई है और दूसरी ओर इनको सरकारी गाड़ियों के लिए रिजर्व भी कर दिया गया है। सरकार की यह नीति खजाने के लिए फंड एकत्रित करने के लिए बनाई है या फिर ये वाहन नंबर सरकारी गाड़ियों के लिए रिजर्व किये हैं। मुख्य सचिव को 12 दिसंबर, 2022 तक अपना शपथ पत्र न्यायालय के समक्ष दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि वीआईपी नंबर से मशहूर क्रम संख्या 0001 से 0010 सरकारी वाहनों के लिए ही क्यों आरक्षित है। क्या सरकारी वाहन वाहन इन नंबरों के बिना नहीं चल सकते। कोर्ट ने सरकार के इस मनमाने रवैए पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि इन नंबरों को जारी करने के पीछे सरकार की मंशा उक्त नंबरों की नीलामी कर सरकारी खजाने में बढ़ोतरी करना है तो इन नंबरों का सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित करना तर्कसंगत नहीं है। सरकार टैक्स पेयर के पैसे पर सरकारी खज़ाने का इस्तेमाल इन नंबरों को अपने वाहनों के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता। सरकार इस मामले में निजी लोगों से बराबरी के हक की अपेक्षा नहीं कर सकती। सरकार के पास आम जनता के टैक्स के पैसे की कीमत पर सरकारी वाहनों पर वीआईपी नंबरों के भुगतान का विकल्प सही नहीं है।

याचिकाकर्ता ने अपनी गाड़ी के लिए नियमानुसार क्रम संख्या HP 62C -0006 के आवंटन के लिए 50,000 रुपये की राशि परिवहन विभाग के पास जमा करवाई थी, फिर भी उक्त नंबर उसे नहीं दिया गया। सरकार के इन आदेशों को प्रार्थी ने याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी है। न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के तहत वाहनों की क्रम संख्या 0001 से 0010 तक केवल सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित रखी गई है। सरकारी वाहनों के लिए इस क्रम संख्या की कीमत 100000 प्रति नंबर रखी गई है। कोर्ट ने अधिसूचना में राज्य सरकार के लिए आम जनता के टैक्स की कीमत पर इस तरह की व्यवस्था पर हैरानी जताई है।

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