आवाज़ ए हिमाचल
नई दिल्ली। बैंक लोन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक लोन लेने वालों का पक्ष सुना न जाए, तब तक उनके खातों को ‘फ्रॉड घोषित’ नहीं किया जाएगा। बिना सुनवाई का अवसर दिए लोन लेने वालों के खातों को फ्रॉड के वर्गीकरण से गंभीर सिविल परिणाम होते हैं। ये एक तरह से लोन लेने वालों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डालने के समान है, इसलिए धोखाधड़ी पर मास्टर निदेशों के तहत उधारकर्ताओं को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऑडी अल्टरम पार्टेम के सिद्धांतों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंक खातों के धोखाधड़ी खातों के वर्गीकरण पर जारी नोटिफिकेशन में पढ़ा जाए। इस तरह का फैसला एक तर्कपूर्ण आदेश द्वारा किया जाना चाहिए।
यह नहीं माना जा सकता कि मास्टर सर्कुलर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बाहर करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने दिसंबर, 2020 में तेलंगाना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को बरकरार रखा है। पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को भी रद्दकर दिया, जो इसके विपरीत था। तेलंगाना हाई कोर्ट ने कहा था कि ऑडी अल्टरम पार्टेम का सिद्धांत यानी पक्ष को सुनवाई का अवसर देना, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, किसी पार्टी को ‘धोखेबाज कर्जदार’ या धोखाधड़ी वाले खाते के धारक के रूप में घोषित करने से पहले लागू किया जाना चाहिए।
आरबीआई ने 2016 में जारी किया था सर्कुलर
आरबीआई ने 2016 में एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें बैंकों को विलफुल डिफॉल्टर्स के खातों को फ्रॉड घोषित करने की अनुमति दी गई थी। आरबीआई के इस कदम को कई हाई कोर्ट में चुनौती मिली थी।
यह था पूरा मामला
दरअसल, एसबीआई ने तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। तेलंगाना हाई कोर्ट ने साल 2020 में राजेश अग्रवाल की याचिका पर फैसला सुनाया था कि किसी भी अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले अकाउंट होल्डर को सुनवाई का एक मौका दिया जाना चाहिए।