आवाज ए हिमाचल
डेस्क प्रभारी
3 जुलाई: कर्मचारियों की पेंशन बहाल करवाने तथा अन्य कई मांगों के लिए फतेहपुर में चल रहे धरने को भले ही अब तक सरकार नजरअंदाज कर रही है परन्तु ज्यादा अनदेखी सरकार को महंगी भी पड़ सकती है क्योंकि फतेहपुर इस समय उपचुनाव की दहलीज पर खड़ा है। आंदोलन के माध्यम से फतेहपुर के मतदातों की नब्ज टटोलते हुए जिस तरह उन्हें आंदोलन का हिस्सा बनाया जा रहा है, वह भाजपा के लिए खतरे की घण्टी है ।
सरकार ने जल्दी कोई निर्णय नहीं लिया तो भाजपा को नुक्सान पहुंचना यकीनी है। यदि इस धरने की कमान किसी और ने संभाली होती तो शायद अब तक यह धरना समाप्त भी हो गया होता परन्तु जिस आंदोलन का नेतृत्त्व पूर्व मंत्री व पूर्व सांसद डा राजन सुशांत कर रहे हों, उसे हल्के में लेना स्वयं को जोखिम में डालने से कम नहीं है।
धरना 100 दिन से ऊपर का हो गया है परन्तु जयराम सरकार अभी तक आंखे मूंदे हुए है । क्या यह बात भुला दी गई है कि डा राजन सुशांत वह व्यक्ति है जिसने शाह नहर आंदोलन सहित कई आंदोलनों की अगुवाई करते हुए उन्हें अंजाम तक पहुंचा कर लोगों को न्याय दिलाया है। इतिहास गवाह रहा है कि न्याय दिलाने के लिए डा सुशांत जहां खड़ा हो जाता है तो वह अपने आप में ही एक आंदोलन बन जाता है । प्रदेश के लाखों कर्मचारियों की पेंशन बहाली के लिए छेड़े गए इस आंदोलन को शुरू करने से पहले ही जिस व्यक्ति ने कर्मचारियों को पेंशन दिलाने के लिए अपनी पेंशन तक छोड़ दी हो, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह आंदोलन महाभारत युद्ध से कम होने वाला नहीं है।
धरने को एनपीएस के तहत आए पूर्व व वर्तमान कर्मचारियों के मिलते समर्थन के अतिरिक्त आमजन भी यह कह कर धरने/प्रदर्शन को सही बता रहा है कि जब राजन सुशांत अपनी पेंशन छोड़ सकते हैं तो लोगों के हितों की रक्षा का दम भरने वाले वह नेता क्यों नहीं कर्मचारियों के हक में बोल रहे हैं जो कुछ समय विधानसभा, लोकसभा या राज्यसभा में बिता कर आज हजारों-लाखों की पेंशन पा रहे हैं ।
फतेहपुर, जुब्बल-कोटखाई विधानसभाई क्षेत्रों के साथ मंडी संसदीय क्षेत्र का उप चुनाव होना है। ऐसे में यदि एनपीएस का मुद्दा ठंडा नहीं हुआ और कर्मचारी भाजपा के खिलाफ चले गए तो चुनाव में भाजपा को नुकसान होना निश्चित है जिसका सीधा-सीधा असर अगले वर्ष होने वाले प्रदेश विधानसभा के आम चुनावों पर भी पड़ेगा।