आवाज ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल हाई कोर्ट ने महत्त्वपूर्ण व्यवस्था दी है कि जर्जर मकान से किरायेदार को बाहर करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि पहले मकान मालिक भवन निर्माण का नक्शा पास करवाए। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने किरायेदार द्वारा बेदखली आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला पारित किया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि मकान की खस्ताहालत को देखते हुए मकान मालिक कभी भी मकान खाली करवाने का हक रखता है। कोर्ट ने किरायेदार के रि एंट्री के हक को भी स्पष्ट करते हुए कहा कि किरायेदार को कानून के तहत दिया गया यह हक कई पहलुओं पर निर्भर करता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जर्जर मकान से किरायेदार को बेदखल करने के लिए मकान मालिक को यह भी जरूरी नहीं है कि वह मकान के पुन: निर्माण का निर्धारित समय किरायेदार को बताए।
मामले के अनुसार शिमला की वाईएमसीए संस्था ने अपने 80 साल पुराने खस्ताहाल सर्वेंट क्वार्टर से किरायेदार को निकालने के लिए रेंट कंट्रोलर के समक्ष याचिका दायर की थी। संस्था का कहना था कि विवादित मकान अपनी आयु पूरी कर चुका है और रहने लायक नहीं है। इसके स्थान पर ज्यादा कमाई के लिए नया मकान बनाने की बात भी मकान मालिक की ओर से कही गई थी। किराएदार का कहना था कि मकान मालिक ने नए मकान का नक्शा अप्रूव नहीं करवाया है और उसके साथ इस बारे में कोई चर्चा भी नहीं की है। रेंट कंट्रोलर ने किरायेदार को इस शर्त पर बाहर करने के आदेश दिए कि पहले मकान मालिक नक्शा स्वीकृत करवाएगा और किरायेदार को रि एंट्री का हक भी होगा। दोनों पक्षकारों ने इस आदेश को अपील के माध्यम से चुनौती दी।
अपीलीय अदालत ने किरायेदार की अपील खारिज कर दी और मकान मालिक संस्था की अपील को स्वीकारते हुए उन्हें मकान के पुन: निर्माण करने की समय सीमा भी तय कर दी। फिर से दोनों पक्षकारों ने अपीलीय अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।