भारत-पाकिस्तान विभाजन में विस्थापित जमीन आवंटन का हकदार नहीं: हिमाचल हाईकोर्ट

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भारत-पाकिस्तान विभाजन में विस्थापित होने वाले की जमीन आवंटन की मांग खारिज कर दी। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने स्पष्ट किया कि विभाजन से विस्थापित होने पर याचिकाकर्ता को जमीन आवंटन का अपरिहार्य अधिकार नहीं है। अदालत ने केंद्र सरकार के उस निर्णय को सही ठहराया, जिसके तहत विस्थापित को मुआवजा देने का निर्णय लिया गया था।याचिकाकर्ता चंद्रपाल सिंह और अन्य की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से गुहार लगाई थी कि विभाजन के दौरान विस्थापित होने के चलते उन्हें शिमला शहर में घर बनाने के लिए जमीन का आवंटन किया जाए। दलील दी गई कि भारत-पाकिस्तान विभाजन में उनके पूर्वज सरदार जगत सिंह पश्चिमी पाकिस्तान से विस्थापित होकर शिमला पहुंच गए। विभाजन के बाद उनके पास शिमला में रहने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

सरदार जगत सिंह की मौत के बाद वर्ष 1995 में उनके वशंज मान कौर ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी और गुहार लगाई थी कि या तो उन्हें जमीन आवंटित की जाए या उचित मुआवजा मिले। वर्ष 2016 में अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए केंद्र सरकार को मुआवजा देने के आदेश दिए थे। बाद में याचिकाकर्ताओं ने केंद्र को नोटिस दिया और 34 हजार रुपये पर वर्ष 1948 से ब्याज देने की मांग की। केंद्र ने अदालत को बताया कि वर्ष 2016 तक मुआवजा के तौर पर 3.13 लाख रुपये स्वीकृत किए गए हैं। केंद्र ने अदालत के ध्यान में लाया कि याचिकाकर्ताओं से उनके बैंक खातों की जानकारी मांगी गई, लेकिन याची ने अभी तक कोई रिकॉर्ड नहीं भेजा। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन कर पाया कि याचिकाकर्ता ने अदालत से दोहरी मांग की थी। अदालत ने निर्णय में स्पष्ट किया कि जब मुआवजे की मांग को सरकार ने मंजूर कर लिया है तो याचिकाकर्ता भूमि आवंटन की मांग नहीं कर सकते हैं।

ग्रेच्युटी पर ब्याज नहीं देने पर सहकारिता पंजीयक से स्पष्टीकरण

प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रेच्युटी पर ब्याज न देने पर सहकारिता पंजीयक से स्पष्टीकरण तलब किया है। अदालत की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब से खंडपीठ ने असंतोष जताया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 14 मार्च को निर्धारित की है। 10 जनवरी 2022 को अदालत ने सहकारिता पंजीयक को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न ब्याज के 4,36,078 रुपये उससे वसूले जाएं। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को ग्रेच्युटी पर ब्याज के 4,36,078 रुपये अदा करने के आदेश दिए थे। खंडपीठ ने सचिव को आदेश दिए कि थे वह चार हफ्ते के भीतर मामले की जांच करें और दोषी अधिकारियों से ब्याज की राशि वसूलें, चाहे दोषी अधिकारियों में सहकारिता पंजीयक ही क्यों न हो। मामले के अनुसार सहकारिता विभाग ने याचिकाकर्ता को 29 जून 2017 को निलंबित किया था। अगले ही दिन वह सहायक पंजीयक के पद से सेवानिवृत्त हो गया।

18 जुलाई 2017 को विभाग ने उसके खिलाफ आरोपपत्र जारी कर दिया और उसके सारे वित्तीय लाभ रोक दिए। याचिकाकर्ता के खिलाफ विभाग ने आरोप लगाया था कि उसने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया, जिससे हमीरपुर की बलूट सहकार समिति में करोड़ों रुपयों का घोटाला हुआ। इस आरोप पत्र को याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष चुनौती दी। अदालत ने 30 दिसंबर 2021 को विभाग की ओर से जारी आरोप पत्र को रदद्दद कर दिया था। 12 मई 2022 को विधि विभाग ने सलाह दी कि हाईकोेर्ट के निर्णय को लागू करना ही उचित है। 26 मई 2022 को विभाग ने याचिकाकर्ता की ग्रेच्युटी अदा कर दी, लेकिन इस पर चार वर्ष का ब्याज देने से इनकार कर दिया। अदालत ने पाया कि 5 सितंबर 2022 को सचिव सहकारिता ने पंजीयक सहकारिता को निर्देश दिए थे कि याचिकाकर्ता देरी से दी गई ग्रेच्युटी पर ब्याज का हक रखता है। इसके बावजूद भी पंजीयक ने याचिकाकर्ता को ब्याज देने से इनकार कर दिया।

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