विश्वकर्मा मंदिर बिलासपुर में चल रही है रामकथा
आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। श्री विश्वकर्मा मंदिर परिसर में चल रही श्री राम कथा में प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए पंडित संदीप वशिष्ठ ने प्रभु राम और निषादराज केवट के गूढ़ प्रेम रहस्य को उजागर करते इस वृतांत पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि एक समय भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेष नाग की शैया पर शयन कर रहे थे जबकि माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही थी। इतने में सागर में तैरता हुए एक कछुए ने प्रभु के चरणों को स्पर्श करने की चेष्टा की, लेकिन माता लक्ष्मी ने उसे अपने हाथों से दूर हटा दिया। यही क्रम बार-बार चलता रहा और जब कछुआ असफल रहा तो उसने सोचा कि क्यों न श्री मुख के दर्शन कर लूं। यहां भी वहीं संकट आन खड़ा हुआ जैसे कछुआ आगे बढ़ता वैसे ही शेष नाग फुंकार कर उसे दूर कर देते। हताश कछुआ दूर जाकर मन ही मन में प्रभु से विनती करने लगा कि क्या आपकी सेवा करने का कार्यभार इन दोनों ने ले रखा है। मासूम कछुए की बात पर प्रभु ने कहा कि अगले जन्म में एक समय ऐसा आएगा जब तुम मेरी सेवा करोगे और ये दोनो दूर खड़े रहेंगे तथा कुछ भी नहीं कर पाएंगे। कालांतर परिवर्तन में जब विष्णु अवतार भगवान श्री राम को वनवास हुआ तो सरयु नदी पार करने के लिए उन्हें मल्लाह की आवश्यक्ता पड़ी। मल्लाह यानि केवट निषादराज को जब इस बात का पता चला तो वे दौड़े-दौड़े आए और प्रमु के श्री चरणों में गिर पड़े। उन्होंने प्रभु से उनके चरण धोने की सेवा मांगी जिसे प्रभु ने सहर्ष स्वीकार किया। निषादराज केवट बड़े प्रेम से प्रभु के चरणों को धो रहे हैं तो भगवान राम ने शेष नाग के अवतार लक्ष्मण और माता लक्ष्मी की अवतार माता सीता से कहा कि यह वही कछुआ है जिसे आपने मेरी सेवा करने से दुत्कार दिया था, अब देखो यही कछुआ यानि निषादराज मेरी सेवा कर रहा है और आप दोनो दूर खड़े हो। इस पर माता सीता ने प्रभु राम की लीला को वंदन किया और सभी ने जय जय कार की। पंडित संदीप वशिष्ठ ने बताया कि भगवान के चरणों में आने से मनुष्य के समस्त कलेश कट जाते हैं। कथा समापन पर प्रसाद वितरण कार्यक्रम भी हुआ।