आवाज़ ए हिमाचल
12 अप्रैल। हिमाचल में कोरोना संक्रमण के मामले बढऩे पर प्रदेश सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं। इनमें शिक्षण संस्थनों को 21 अप्रैल तक बंद करने का निर्णय लिया है, लेकिन सरकार के इस फैसले के विरोध में स्वर उठने शुरू हो गए हैं। एक दिन पहले मंडी जिले के निजी स्कूल प्रबंधकों ने सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह अतार्किक फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए। बोर्ड परीक्षाओं के दौर में इस तरह का फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा है। फैसले पर आपत्ति जताते हुए बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि जब और अन्य विभागों के अधिकारी और कर्मचारी ऑफिस आ सकते हैं तो स्कूलों में शिक्षकों और गैर शिक्षकों को छुट्टी किसलिए दे रहे, वह भी ऐसे माहौल में जब बोर्ड परीक्षाएं सिर पर हैं।
लोगों का कहना है कि स्कूलों के प्रबंधन का जिम्मा सरकार को स्कूल के मुखिया पर छोड़ देना चाहिए। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की जमा दसवीं व जमा दो की परीक्षाएं 13 अप्रैल से शुरू हो रही हैं।सरकार के आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की ड्यूटी परीक्षा के संचालन के लिए लगी है, वही लोग स्कूल आएंगे। ऐसे में किसी स्कूल में सिर्फ प्रिंसिपल के आने का क्या औचित्य है जब शिक्षक और गैर शिक्षक नहीं आएंगे। कई कक्षाओं के लिए अभी प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। लेकिन गैर शिक्षकों के न आने से यह काम भी प्रभावित हो रहा है। पहले से सरकारी स्कूलों में बच्चों की कम संख्या का दंश झेल रहे स्कूल मुखिया भी सरकार के इस फैसले से असमंजस में हैं। उनके लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति हो गई है।
स्टाफ को छुट्टियां अनुचित
हिमाचल प्रदेश प्रधानाचार्य एवं निरीक्षण अधिकारी संघ के अध्यक्ष अनिल नाग का कहना है कोरोना के बढ़ते मामलों पर बंदिशें तो ठीक हैं लेकिन स्कूलों में शिक्षकों-गैर शिक्षकों को छुट्टी देने का औचित्य समझ नहीं आया है। किसी भी स्कूल के संचालन का जिम्मा स्कूल के मुखिया के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। बच्चों को बेशक अभी छुट्टयां दी जाएं लेकिन अन्य स्टाफ के लिए यह प्रतिबंध उचित नहीं है। स्कूलों में दाखिले के साथ ही परीक्षाएं भी शुरू हो रही हैं, लिहाजा सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।