बिलासपुर : विश्व ग्लूकोमा जागरूकता अभियान के अंतर्गत शिविर आयोजित

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आवाज़ ए हिमाचल  

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर।

28 मार्च। विश्व ग्लूकोमा जागरूकता अभियान के अंतर्गत खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ कुलदीप ठाकुर की अध्यक्षता में नागरिक अस्पताल मारकंड में जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें विजय कुमार आई औपथमिक ऑफिसर ने इस कैंप में आए हुए सभी लोगों का ग्लूकोमा के लिए नेत्र चेकअप स्क्रीनिंग किया।

डॉक्टर कुलदीप ठाकुर ने बताया कि स्वास्थ्य संगठन की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में ग्लूकोमा के कारण करीब 45 लाख लोगों की आखों की रोशनी चली गयी है। काला मोतियाबिंद यानी ग्लूकोमा आंखों से जुड़ी एक गम्भीर बीमारी है और आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों की आंखों की रोशनी ग्लूकोमा की वजह से चली जाती है। “ग्लूकोमा” क्या है- आंख की अवस्‍थाओं का एक समूह जो अंधापन का कारण हो सकता है। हर तरह के ग्लूकोमा में आंखों में अधिक दबाव होने की वजह से आंख को दिमाग से जोड़ने वाली तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है।ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। मगर यदि इन लक्षणों के दिखने पर आप चिकित्सक के पास जाकर आंखों की जांचकरवाएं, तो आंखों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। 40 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को वर्ष में एक बार अपनी आंखें जरूर चेक करवानी चाहिए।

उन्होंने बताया कि बार-बार सिरदर्द होना आंखों के चश्मे का नंबर जल्दी-जल्दी बढ़ना अंधेरे कमरे (जैसे थियेटर या सिनेमा हॉल) में आंखों का एडजस्ट न हो पाना। दरअसल आंखें सामान्य होने पर अंधेरे कमरे में कुछ समय रहने के बाद आंखें सेट हो जाती हैं और आपको पहले से कुछ कम अंधेरा दिखाई देता है, जबकि ग्लूकोमा के मरीजों की आंखें सेट नहीं हो पाती हैं।सफेद रोशनी के आसपास इंद्रधनुष जैसे रंग दिखाई देना। (सफेद रोशनी की तरफ देखने पर तमाम रंगों का रोशनी से बिखरते हुए दिखाई देना) आंखों में तेज दर्द और कई बार चेहरे के हिस्से में भी दर्द महसूस होना, जी मिचलाना, उल्टी और सिरदर्द की समस्या।कई बार आपको ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। ऐसे में आपको नियमित जांच से ही आंखों में ग्लूकोमा के बारे में पता चल सकता है।

यह बहुत महत्वपूर्ण हैं कि आप ग्लूकोमा की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर लें क्योंकि एक बार ग्लूकोमा पूरी तरह होने के बाद इसको ठीक करना काफी मुश्किल हो जाता है। लेकिन समय रहते यदि ग्लूकोमा के लक्षणों को पहचान लिया जाए तो मरीज को नेत्रहीन होने से कुछ दवाइयां के द्वारा बचाया जा सकता है। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता जाता है आंखों की ऊपरी सतह और देखने की क्षमता प्रभावित होने लगती हैं। कई बार काला मोतिया गंभीर हो जाता है, जिस कारण अंधापन भी हो सकता है। अक्सर लोग इस बीमारी पर आंखों की कार्यक्षमता कम होने तक ध्यान नहीं देते। काले मोतिया या मोतियाबिंद के दौरान आंख की मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली ऑप्टिक तंत्रिकाएं बुरी तरह प्रभावित होती है। और उनकी कार्यक्षमता धीमी हो जाती है। इससे दूसरी आंख पर अधिक दबाव पड़ता है यह स्थिति काफी खतरनाक होती है। ग्लूकोमा का एकमात्र इलाज है सर्जरी। इसके बिना ग्लूकोमा से छुटकारा नहीं मिल सकता है। ग्लूकोमा की सर्जरी भी अब काफी आसान व दर्दरहित हो गई है। इस कैंप में लगभग 30 लोग उपस्थित रहे तथा सभी की ग्लूकोमा के लिए आई ऑफ थैलेमिक ऑफिसर विजय कुमार ने स्क्रीनिंग भी की गई तथा नेत्र चेकअप के लिए प्रेरित किया। हैल्थ एजूकेटरस ने सभी लोगों से इस जानकारी को जन जन तक पहुंचाने का अनुरोध किया।

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