बिलासपुर में आयोजित कवि सम्मेलन में प्रदेश भर के कवियों ने कविताओं द्वारा बिखेरे रंग

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सोलन के साहित्यकार डॉ शंकर वशिष्ठ रहे मुख्य अतिथि

आवाज़ ए हिमाचल 

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। जिला भाषा संस्कृति विभाग द्वारा बिलासपुर में राज्य स्तरीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें प्रदेशभर के विभिन्न जिलों से आए 35 कवियों ने भाग लिया। इस कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि सोलन के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शंकर वशिष्ठ रहे वहीं अध्यक्षता मंडी जिला से आए साहित्यकार डॉ. विजय विशाल ने निभाई। दीप प्रज्वलन के साथ इस राज्य स्तरीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया गया।

शुरुआत में अपनी कविता में एसआर आजाद ने कहा कि }मेघा गरजे बरसे, बरसे चमके कहीं बिजुरिया रे, आजा घर परदेसी बलमा लागे नहीं जिया रे”। करण चंदेल की कविता थी “एक पंडित के दो श्लोक, एक ग्रंथि की वाणी, एक नमाजी की आयतें सुनता तो रहा हूं”। शाम अजनबी ने कहा “आज मुझको पूछता है रहनुमा मेरा, क्यों अकेला तू कहां है कारवां तेरा”।
रूपेशरी शर्मा की कविता थी “भीतरी औरत होती वह इंद्रधनुष फैलती इस छोर से उस छोर तक”। हरी प्रिया शर्मा ने कहा “दुनिया भर की नफरतों पर नंगे पांव चलती हैं औरतें”। रविंद्र भट्टा की लाइनें थी “मैंने कई ऐसे शख्स देखे हैं जो पाला भी बदल लेते हैं, अपनी आस्था और अपने रंग”। दिलीप सिंह मास्टर ने “नारी जाति पर जुल्मों की बरसात” कविता सुनाई ।
मनोहर लाल ने “सुर में यहां कोई नहीं”। रामलाल पाठक ने “पैर भी कितने ही पसार”। ओम देवी ने “हमें दिल की बीमारी है”। किरण कुमार ने “भाग्य भी अजीब कुंभकरण है” कविता सुनाई। मुरारी शर्मा की पंक्तियां थी “धान रोपती औरतें धरती की मखमली देह पर लिख रही है हरियाली की इबारत” ।
राजपाल कुटलहरिया ने कहा “जिसके अंश से मेरी संरचना और विकास हुआ जिसकी कोख में रख कर पांव दुनिया का आभास हुआ वह थी मेरी मां”। कुलदीप चंदेल ने कहा “चुनाव में परिवर्तन की लहर कुछ यूं चली नेता रूपी वटवृक्ष चुनाव हार गए”। अशोक कालिया की पंक्तियां थी “मुझको मेरे खुदा इतना तो बता क्यों मोहब्बत नहीं है सभी के लिए”। कृष्ण चंद्र महादेविया की पंक्तियां थी “सिर कश्ती टोपी टोपी भर नहीं है”। संदेश शर्मा ने तरन्नुम में सुनाया “एक मां ने ही जने हैं बेटा और बेटी, बेटा बना कुल दीपक बुझी बुझी बेटी”। अरुण डोगरा रितु ने “चौदहवीं का चांद” कविता में सुनाया कि अब चांद ने तलाश कर लिया है नया आकाश। अनीश ठाकुर ने कहा “ना हिंदू ना सिख ईसाई ना मुसलमान बनना है मुझे तो इंसान बनना है”। डॉ रविंद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि “हर जन्म में पुलिस बनूं”। डॉ. अनेक राम संख्यान की कविता थी “कभी कल्पना की उड़ान हूं मैं, कभी के मन का तूफान हूं मैं”। डॉक्टर लेख राम शर्मा ने बिलासपुरी बोली में कविता सुनाई और कहा “घर दूजे राम फुकी ने अप्पू तमाशा देखी जाया कर दे”। डॉ शंकर विशिष्ट की पंक्तियां थी “मैं भूल गया तो भूल ही जाऊंगा, मैं बुझ गया तो खुद ही जाऊंगा, कोई दीप नहीं फिर जल जाऊं”। डॉ विजय विशाल ने कहा, “मोहब्बत के सिवा कोई चारा नहीं है नफरत इस देश की मुख्यधारा नहीं है”। मंच संचालन कर रहे रविंद्र शर्मा ने भी पहाड़ी भाषा में कविता सुनाई। उन्होंने कहा “पुरानियां गल्ला पुराने थे लोग किसी जो नी पायिरा इना रा सोग, न वे लोग कने नवा जमाना लेना लक कनेक्ट आना आना आना”। इसके अतिरिक्त डॉक्टर अनीता शर्मा, सुरेंद्र मिन्हास जसवंत सिंह चंदेल, जीतराम सुमन ,रविंदर शर्मा, किरण कुमार, स्वप्निल सूर्यांश तथा दीप्ति सारस्वत ने भी कविताओं का वाचन किया।

जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने सभी साहित्यकारों का अभिवादन किया और कहा कि सभी के सहयोग से यह कार्यक्रम सफल साबित हुआ है।

 बिलासपुर में बेहतर तरीके से चल रही है साहित्यिक गतिविधियां : डॉ. शंकर वशिष्ठ

अपने मुख्य अतिथि के संबोधन में डॉ शंकर वशिष्ठ ने कहा कि बिलासपुर में साहित्यिक गतिविधियां पहले भी बहुत बेहतर चल रही थी जिस समय डॉ अनीता शर्मा जिला भाषा अधिकारी हुआ करती थी और उसी परिपाटी को और आगे बढ़ाने में अब रेवती सैनी ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है । अध्यक्षता कर रहे डॉ विजय विशाल का कहना था कि कवियों को कविता का अर्थ समझना चाहिए और सामायिक विषयों पर गहरी चोट करते हुए कविताएं लिखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कविता और गद्य में अंतर करना बहुत आवश्यक है। इस अवसर पर अन्य श्रोता भी उपस्थित रहे।

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