बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रेम टेस्सू हर किरदार में फिट, राम लीला से बनाई पहचान आज देश भर में है नाम 

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आवाज़ ए हिमाचल 

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। प्रेम टेस्सू एक ऐसा नाम जिसके स्मरण मात्र से ही एक शिक्षाविद से ज्यादा एक कलाकार का बोध हो जाता है। कला के लिए इनकी सबसे पहली नर्सरी बिलासपुर की राम लीला ही रही। महज पांच साल की उम्र में अपने पिता स्वर्गीय राम दितु टेस्सू की उंगली पकड़ कर राम लीला में पहुंचना तथा छोटे से वानर का अभिनय कर अपने करियर की शुरूआत करने वाले टेस्सू पूरे उतरी भारत में एक हरफनमौला एवं संवेदनशील कलाकार के रूप में उभरे और उन्होंने प्रदेश ही नहीं बल्कि बाहरी राज्यों में भी प्रदेश का नाम रोशन किया।

4 अक्तूबर 1948 में स्वर्गीय रामदितु टेस्सू और माता स्वर्गीय छोटो देवी के घर जन्मे प्रेम टेस्सू पांच भाई बहनों में चौथे स्थान पर थे। स्वर्गीय तारा देवी, स्वर्गीय बलदेव सिंह, जोगेंद्र पाल, स्वर्गीय प्रेम टेस्सू व गोपाल टेस्सू इनके भाई बहन हैं। 1979 में इनकी शादी चंडीगढ़ की सुशीला देवी से हुई। इनकी बेटी प्रियंका, पुत्र अभिषेक टेस्सू और बेटी शिवंका है। राम लीला में अनेक किरदार निभाने वाले प्रेम टेस्सू बीच-बीच में स्वयं लिखित और निर्देषित हास्य नाटिकाओं का आयोजन भी करते थे, जिसका दर्शक बेसब्री इंतजार किया करते थे। यह वह दौर था जब किसी भी पात्र के लिए कलाकार का चयन होना गर्व की बात होती थी, तथा इस किरदार को निभाने के लिए कलाकारों की लगन और मेहनत देखते ही बनती थी। इन्होेंने केवट के किरदार में इस कदर निभाया कि यह पात्र सजीव हो गया। इसके अलावा इन्होंने कालनेमि, षुशेण, अही महि रावण के किरदारों से भी न्याय किया। पढ़ाई में सदा अव्वल रहने वाले प्रेम टेस्सू जब  शिक्षा विभाग में नियुक्त हुए तो प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में सेवाएं देने के कारण राम लीला के लिए पूरा समय नहीं दे पाते थे, बावजूद इसके वे जब भी राम लीला में आते तो किसी न किसी किरदार को निभाकर या अपने चेलों के साथ लघु नाटिका प्रस्तुत कर अपनी हाजिरी जरूर लगाते।

कामेडी के क्षेत्र में अपनी अलग से पैठ रखने वाले प्रेम अपने आस-पास के वातावरण तथा घटित होने वाले घटनाक्रमों से हास्य ढूंढ लेते थे और उसे समय की मांग के अनुसार ऐसे क्रियान्वित करते जैसे यह सभी के साथ घटित हो। वहीं हाकी, बाल के कलर होल्डर रोपड़ (पंजाब यूनिवर्सिटी), एथेलेटिक्स के तेजतर्रार खिलाड़ी मैदान में भी किसी से पीछे नहीं थे। पारिवारिक परिस्थितियां ज्यादां मजबूत न थी लेकिन इन्होंने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा। एक शिक्षक से लेकर हैडमास्टर और प्रिंसीपल तक का सम्मानजनक सफर तय किया। इन्हें घुमारवीं में होने वाली रामलीला तथा ग्रीष्मोत्सव का जनक भी कहा जाता है।

बहुआयामी प्रतिभा के धनी रहे प्रेम लाल टेस्सू के आवास में रखे स्मृति चिन्ह, शिल्डस, अवार्ड, मैडल स्वयं ही अपनी विजय गाथा प्रस्तुत करते हैं। वहीं करीब दो दशकों से ज्यादा समय तक राम लीला का अभिन्न अंग रहे प्रेम का मंचन में ऐसा कोई विभाग न था जहां पर इनका प्रभावशाली हस्तक्षेप न हो। हजारों कलाकारों और आफिसर्ज के चहेते गुरू ने कई नाटक लिखे तथा उन्हें क्रियान्वित कर अपनी अदाकारी को प्रथम पंक्ति में रखा। यही नहीं आल इंडिया रेडियो, जालंधर सुरदर्शन तथा डीडी शिमला में पहाड़ी प्रकरण, रोचक जानकारियां तथा हास्य प्रकल्पों के साथ प्रदेश की जनता के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हुए। वर्ष 1980 में तत्कालील राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन कर वाहवाही बटोरने का सौभाग्य भी इन्हें मिला है। जो बिलासपुर के लिए गौरव का विषय है। वर्तमान में इनके पुत्र अभिषेक ऐतिहासिक धरोहर बिलासपुर की राम लीला से जुड़े हैं तथा पिता द्वारा लगाए पौधे को संभालने का प्रयास कर रहे हैं। 

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