आवाज ए हिमाचल
9 जनवरी। हिमाचल प्रदेश के बहुचर्चित फर्जी डिग्री मामले में फंसा मानव भारती विश्वविद्यालय का प्रबंधन एजेंटों के माध्यम से डिग्रियां बेचकर वसूली करता रहा। एजेंट डिग्री में अंकों की प्रतिशतता के हिसाब से सौदा करते थे। जितने ज्यादा नंबर उतने ज्यादा पैसों की मांग की जाती थी। फर्जी डिग्री को एक से ढाई लाख रुपये तक में बेचता था। सीआईडी और हिमाचल पुलिस की संयुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) की जांच में यह बात सामने आई है।
अब तक की जांच, बरामद हुए डिजिटल व कागजी दस्तावेज और गिरफ्तार किए गए लोगों से मिली जानकारी से विश्वविद्यालय के पूरे गोरखधंधे की पोल खुल गई है। सूत्रों के अनुसार जांच में यह भी पता चला है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन एजेंटों की मदद से फर्जी डिग्री के खरीदारों को तलाशता था। जिस खरीदार की जितनी हैसियत होती थी और वह जिस तरह की डिग्री चाहता था, उसके हिसाब से रेट तय होता था। अब तक की जांच में फर्जी तरीके से 45 हजार से ज्यादा डिग्रियों में बीटेक, एमटेक, एमबीए और एमसीए जैसी तकनीकी शिक्षा वाली डिग्रियों को भी विश्वविद्यालय ने बेचने की बात सामने आई है।
खास बात यह है कि इन फर्जी डिग्रियों की मदद से बड़ी संख्या में युवाओं ने देश ही नहीं, विदेशों में भी नौकरियां हासिल कर ली हैं। जांच एजेंसी ऐसे लोगों की तलाश में जुटी है जो इन फर्जी डिग्रियों की मदद से विदेशों में नौकरियां कर रहे हैं। जांच में यह भी पता चला है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन बिक्री के लिए एजेंट को निर्धारित रेट बताता था और उसके बाद एजेंट आगे ग्राहक से ज्यादा रकम भी वसूलते थे। विश्वविद्यालय खरीदार लाने की एवज में एजेंटों को कमीशन भी देता था। सूत्रों का कहना है जांच में करीब 95000 से ज्यादा फर्जी डिग्रियां बेचे जाने की जानकारी मिली है जिनके संबंध में साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं। मामला देश ही नहीं विदेशों तक जुड़ा है। करीब एक लाख लोगों के इस अपराध में जुड़े होने के संभावना जताई जा रही है। ऐसे में एसआईटी अब भविष्य के एक्शन प्लान को लेकर खासी मेहनत कर रही है। बता दें गुरुवार को डीजीपी संजय कुंडू ने सोलन में एसआईटी के अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की थी जिसमें जांच की समीक्षा के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं।