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राकेश डोगरा, पालमपुर। पालमपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कड़ाहू महादेव का मंदिर है। मंदिर के पुजारी कर्म सिंह ढडवाल से बातचीत करने के दौरान पता चला कि यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है।
उन्होंने बताया कि यह बात उन दिनों की है जब बाबा जी का डोहगी में ठंडी आल़ के पास बसेरा था। उन दिनों पुजारी के बुजुर्ग भी उसी जगह पर पशुओं को चराने आते थे। बाबा जी ने उन्हें आदेश दिया कि आप मेरी पूजा किया करो, बाबा जी का चमत्कार देखकर स्थानीय लोगों ने उन्हें दिव्यात्मा न मानकर प्रेतात्मा बताया। पुजारी के बुजुर्ग 4 महीने तक डर के मारे बाबा जी से नहीं मिले, लेकिन बाबा जी फिर उनसे खुद मिले और उन्हें कहा कि मैं प्रेतात्मा नहीं हूं, फिर बाबा जी ने ठंडी आल़ वाला स्थान छोड़ दिया जहां लोगों को बाबा से डर लगता था और थोड़ी ही दूर एक पहाड़ी पर वट वृक्ष के नीचे अपना स्थान ग्रहण किया और उन्हें आदेश दिया कि आप मेरी पूजा किया करो, सब अच्छा होगा और उन्होंने खुशी खुशी कबूल कर लिया। उन्होंने गढ़ खास के कर्म सिंह ढडवाल के बुजुर्गों को पूजा करने की, मलकेहड़ के माधो सिंह कटोच जो अब भवारना व ठाकुरद्वारा में रहते हैं के बुजुर्गों को पानी की व टिक्कर के वैद्य दुर्गा दास अवस्थी के बुजुर्गों को फूलों की सेवा करने का आदेश दिया और सपडुल के महाशय प्रीतम सिंह के बुजुर्गों को आदेश दिया कि नगाड़ा बजाने की सेवा आप करेंगे, तबसे आज तक यह उनकी पांचवी पीढी़ है जो बाबा जी की पूजा कर रही है।
कडा़हू महादेव के साथ-साथ पंजपीरी व सिद्धचानों की मूर्तियां भी स्थापित हैं, उनका भी विधिवत पूजन किया जाता है। यहां पर श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं बहुत जल्दी पूर्ण होती हैं। यहां पर नए विवाहित जोड़े आते हैं, बच्चों के मुंडन भी करवाए जाते हैं, उनकी जात्र भी चढ़ाई जाती है।बाबा जी के मंदिर के साथ ही गुर्जर बस्ती भी है।
पुजारी ने बताया कि एक बार अकाल पड़ा हुआ था। लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे थे तभी लोगों ने बाबा जी से सच्चे मन से प्रार्थना की कि बाबा जी हम पर दया करें और बाबा जी ने सबके घर अन्न से भर दिए, ऐसे दयालु और सच्चे हैं कड़ाहू महादेव। पुजारी जी ने यह भी बताया कि एक बार पुजारी के बुजुर्ग चार धाम की यात्रा पर गए हुए थे। उन दिनों यातायात के साधन नहीं थे, पैदल ही आना-जाना पड़ता था और इसमें बहुत दिन लगते थे। चार धाम यात्रा पर जाने से पहले वे अपने पशुओं को कड़ाहू महादेव के मंदिर के आस-पास छोड़ गए और प्रार्थना की कि वे इनका ख्याल रखें। जब वे महीनों पश्चात घर वापस आए तो उन्हें बाबा जी की कृपा से सब सही सलामत मिला, तभी से जब भी कोई गाय या भैंस प्रसूता होती है तो सर्वप्रथम उनके दूध व दही की भेंट कड़ाहू महादेव को चढ़ाई जाती है और बाद में खुद उसका सेवन करते हैं। सच्चे मन से जो भी इस देवता की पूजा करता है वह उसे मनवांछित फल प्रदान करते हैं।