आवाज़ ए हिमाचल
31 मई।कांग्रेस में यह चर्चा क्या चली कि दो बार चुनाव हारने वाले को टिकट न दिया जाए तो अचानक एक चुनावी हल्के में उम्मीदवारों की कतार ही लग गई। आनन-फानन सोशल मीडिया का सहारा लेकर स्वयं को कांग्रेस उम्मीदवार जतलाया जा रहा है। यह वह चुनाव हल्का है जहां पार्टी के एक राज्य महासचिव ने चुनाव हारने के वावजूद भी संगठन को एक्टिव ही नहीं अपितु मजबूत बनाया हुआ है। गांव-गांव घूम कर अलख जगाना उनकी दिनचर्या में शामिल है और यह दौड़ लगातार पांच वर्षों से लगी है, यही वजह है कि उन्हें यहां से सशक्त प्रत्याशी माना जाता है परन्तु
दो बार हारने वाले को टिकट न देने के पार्टी विचार के चलते यहां कई प्रत्याशी उठ खड़े हुए हैं। जो बीते पांच वर्षों में पार्टी के किसी कार्यक्रम में नहीं दिखे वह भी झलक दिखाने लगे हैं। जनता की समस्याओं को उठाने और लोगों से मिलने का दौर शुरू हो गया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक एक नेता तो प्रदेश कांग्रेस के कई नव नियुक्त पदाधिकारियों तथा कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की दहलीज पर हाजिरी भर माथा टेक आए तथा अपनी दावेदारी भी जता आये। स्थानीय निकाय के अहम पदों पर रह चुके यह जनाब चुनावी दंगल में इस बार अपना दमखम दिखाना चाहते हैं। अभी तक टिकट के लिए कांग्रेस पार्टी के आधा दर्जन सिपाही सामने आ चुके हैं और सब के सब टिकट भी और जीत भी पक्की मान रहे हैं परन्तु आवाज ए हिमाचल टीम ने जब जनता की नब्ज टटोली तो देखा कि यह सब के सब वहम के मायाजाल में इस तरह खो गए है कि इन्हें सब कुछ हरा ही हरा नजर आ रहा है। जन दलीलें सुने तो लगता है कि चुनावी वैतरणी पार करने का सपना संजोए यह महानुभाव केवल दिव्य स्वप्न ही देख रहे हैं। मतदाताओं की सुनें तो उनका स्पष्ट कहना है कि पांच वर्ष तो इन्होंने किसी का हाल नहीं पूछा और चुनाव क्या नजदीक आए यह सबके सगे बन गए हैं। कांग्रेस का यह विचार कि धरातल का सर्वे ही टिकट आबंटन का आधार होगा, इन टिकट चाहवानों की धुकधुकी भी बढाए हुए है परन्तु फिर भी जिस दमखम के साथ यह ताल ठोक रहे हैं, इनकी हिम्मत की दाद देनी होगी।