आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर।
22 अप्रैल। हिमाचल प्रदेश न्यायिक कर्मचारी संघ के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष पवन ठाकुर ने प्रैस को जारी बयान के माध्यम से प्रदेश की जयराम सरकार पर न्यायालय के कर्मचारियों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया है।
उन्होंने कहा कि कई बार संघ द्वारा कर्मचारियों से संबंधित मांगे उठाए जाने पर भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है, जिससे न्यायालय कर्मचारियों में रोष की लहर है। पवन ठाकुर ने कहा कि सरकार द्वारा करीब 2 साल का लंबा समय बीत जाने पर भी नए वेतनमान से वंचित रखा गया है और न ही इस बारे में अभी तक सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आई है, जोकि चिंता का विषय है। सरकार के इस सौतले रवैए के कारण अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारी स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
पवन ठाकुर ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में अधिनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों पर हद से ज्यादा वर्कलोढ़ है। जिस कारण वे विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं तथा अत्यधिक काम के बोझ के कारण इनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। काम के बोझ तले दबे न्यायालय कर्मचारियों को सरकार के इस प्रकार के रवैया को देखते हुए नए वेतनमान से अलग रखना एक बहुत बड़ी विडंबना है।
ठाकुर ने कहा है कि न्यायालय कर्मचरी अनुशासनप्रिय हैं तथा अपने हकों की लड़ाई शालीन तरीके से लड़ते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि यदि सरकार के समक्ष अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाया जाए तो सबसे ज्यादा परेशानी जनता को होगी। बावजूद इसके सरकार से हर बार शालीन एवं शांत तरीके से गुहार लगाते हैं। यहां पवन ठाकुर ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार न्यायालय कर्मचारियों की शालीनता और अनुशासन को उनकी कमजोरी न समझें। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि न्यायालय कर्मी अनुशासित कर्मचारी होने के साथ.साथ अधीनस्थ न्यायालय का कर्मचारी अपने अधिकारों के प्रति भी पूरी तरह से सचेत हैं और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए यदि सरकार ने विवश किया तो वे किसी भी हद तक जाने के लिए बाध्य होंगे। टकराव की स्थिति न बने इसके लिए सरकार को समय रहते संघ की मांगों पर विचार कर हल करना चाहिए।
पवन ठाकुर ने बताया कि सरकार द्वारा शायद यह कहा जा रहा है कि अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों को सेठी-पे कमीशन के माध्यम से वेतनमान पहले ही मिल चुका है जो कि सरासर गलत हैं, सेठी-पे कमीशन के माध्यम से कर्मचारियों को केवल और केवल एक इंक्रीमेंट उनके काम की अधिकता को देखते हुए प्रदान की गई थी और जिस बारे में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिल्कुल स्पष्ट किया गया है कि भविष्य में किसी भी प्रकार के वेतनमान से यह इंक्रीमेंट अलग होगी और उसका किसी भी अन्य वेतनमान से कोई लेना.देना नहीं होगा। अन्य मांगों का जिक्र करते हुए पवन ठाकुर ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों के भर्ती तथा पदोन्नति संबंधी नियम (आरएंडपी) भी सरकार के पास ही लंबित पड़े है, जिन्हें लगभग 2 साल होने को है और अधीनस्थ न्यायालयों में 2 सालों से कोई भी भर्ती तथा पदोन्नति नहीं हुई है। उन्होने कहा कि न्यायालयों में बहुत से पद खाली पड़े हुए हैं, जबकि कई कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं, हो रहे हैं। जिस वजह से भी अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों में बहुत अधिक आक्रोश है।
पवन ठाकुर का कहना है कि सरकार बार.बार अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों के भर्ती तथा पदोन्नति नियमों में आपत्तियां दर्ज कर रही हैं जोकि अपने आप में बहुत ही निंदनीय है। उन्होंने यदि सरकार आपत्तियां दर्ज कर रही हैं तो इससे भी समस्या औंर खिंच रही है। सरकार को चाहिए सरकार एक ही बार में सभी आपतियों का निपटारा करें ताकि कर्मचारियों की समस्या का समाधान एकमुश्त हो। पवन ठाकुर ने माननीय उच्च न्यायालय से भी निवेदन किया है कि माननीय उच्च न्यायालय इस संवदेनशील मामले में रूचि लेकर हस्तक्षेप करें और सरकार से अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों को जल्द से जल्द नया वेतनमान प्रदान करने तथा पदोन्नति तथा भर्ती नियमों को जल्द ही अधिसूचित करवाने का प्रयास करें, ताकि मामला शांतिपूर्वक तरीके से हल हो सके। उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया है कि सरकार न्यायालय कर्मचारियों की पीड़ा को समझते हुए शीघ्र न्याय करेगी।