आवाज़-ए-हिमाचल
4 दिसम्बर : देश के सबसे वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सत्यमित्र वख्शी का आज निधन हो गया। वख्शी ने अपने निवास स्थान कांग्रेस गली ऊना में 94 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। मौत की खबर पाते ही पूरे शहर सहित जिला में शोक की लहर दौड़ गई। बता दें कि सन् 1926 में पिता बाबा लक्ष्मण दास आर्य व माता दुर्गा बाई आर्य के घर में सत्यमित्र वख्शी ने जन्म लिया। सत्यमित्र का पालन पोषण आजादी की जंग में सहयोग कर रहे परिवार के बीच हुआ। सत्यमित्र बख्शी आर्य ने जब मां कहना सीखा तो उसी समय उनके कानों में देश की आजादी के नारे गूंजने लगे। बाल्य काल में ही सत्यमित्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हे अंग्रेजी शासन में हिरासत में लिया और नौ महीनों के लिए जेल भेज दिया। भगत सिंह के साथ किशोरी लाल के साथ सत्यमित्र बख्शी ने लाहौर जेल में नौ माह की सजा काटी। सत्यमित्र बख्शी का पूरा परिवार स्वतंत्रता सेनानी रहा।
माता-पिता के साथ दोनों भाई भी स्वतंत्रता संग्राम में आजादी का नारा लेकर बुलंद करते रहे। खास बात यह है कि 1905 में सत्यमित्र के परिवार ने ऊना में आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया। सत्यमित्र बख्शी ने अपने घर को श्री राम भारत माता मंदिर बना दिया है। जहां घर के दरवाजे से अंदर की दीवारों में स्वतंत्रता आंदोलन की यादें संजोई गई हैं। 94 वर्ष की आयु तक सत्यमित्र वख्शी ने गुलामी का द्वंश व स्वतंत्रता का उल्लास देखा है। बनते से बिगड़ता देश देखा है। बख्शी ने बताया था कि 18वीं सदी में पुलिस का काम अंग्रेजों व उनके बफादारों की रक्षा करना था। इसके अलावा जो अंग्रेजों के विरूद्ध बोलता था, उसे कुचलना था। पुलिस अंग्रेजों के लिए ईमानदार थी, आजादी के परवानों के लिए क्रूर थी। आम मामलों में पुलिस का दखल नहीं है। इसलिए कुछ लहजे में वह बेहतर थे। कुछ पुलिसकर्मी देश भक्त भी थे। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। वहीं, अपने घर को भारत माता का मंदिर बना करके रखा जहां रोज वे भारत माता की जय कार करते थे। सत्यमित्र वख्शी का अंतिम संस्कार कल यानि चार दिसंबर को किया जाएगा।