धारकंडी: रंग लाई मेहनत, गरीब परिवार के बेटे संजीव का दिल्ली के सरकारी स्कूल में टीजीटी इंग्लिश पद पर हुआ चयन

Spread the love

#Special_Enspirational_Story

आवाज ए हिमाचल

तरसेम जरियाल, शाहपुर। जिंदगी में कुछ भी कर गुजरने के लिए कड़ी मेहनत और लगन का होना बहुत जरूरी है। इस बात को सही साबित किया है धारकंडी क्षेत्र की ग्राम पंचायत रिड़कमार के साथ लगते गांव पध्रथला गोला के गरीब परिवार से संबंध रखने वाले संजीव कुमार ने, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत व लगन से दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (Delhi Subordinate Services Selection Board) द्वारा आयोजित परीक्षा पास की है तथा उनका चयन टीजीटी इंग्लिश पद के लिए हुआ है।

दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (Delhi Subordinate Services Selection Board) टीजीटी का परिणाम 17 अक्टूबर को घोषित किया, जिसमें संजीव कुमार का चयन हुआ है। संजीव कुमार ने बताया कि उनके पिता का देहान्त बचपन में ही हो गया था। मुश्किल घड़ी से गुजरते हुए इनकी प्रारंभिक शिक्षा पध्रथला से और प्लस टू सीनियर सेकेंडरी स्कूल गोला से हुई है और बीए महाविद्यालय छतड़ी शाहपुर से। इस  दौरान उन्होंने CSA के अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाला था। संजीव बीएड हरियाणा, एमसी टूरिज़्म में चंडीगढ़ से और एमए इंग्लिश हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला से प्राप्त कर प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारियों में जुट गया था। वे बतौर वोकेशनल ट्रेनर के पद पर महिपालपुर स्कूल में अपनी सेवाएं दे रहे थे और साथ में अपनी पढ़ाई जारी रखी, जसके बदौलत आज वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

बचपन में हो गई थी पिता की मौत

दरअसल, गांव में गरीब परिवार में बच्चे भेड़-बकरियां पालकर और खेती कर अपना गुजारा करते हैं। संजीव ने बताया कि इनकी माता दिनभर मवेशियों को चराकर परिवार के लिए रोजी-रोटी जुटाने में मेहनत करती थी। पर कहते हैं न मेहनत के दम पर किस्मत भी पलट जाती है। माँ बच्चों की पढ़ाई का खर्चा पूरा करने के लिए मेहनत करती रही, जिसके बदौलत बेटों ने अच्छा मुकाम पाया। आज उनके संघर्ष और सफर को सुन आप दंग रह जाएंगे।

संजीव कुमार नीचो देवी धर्मपत्नी अमर ज्योति के घर 1 मई 1991 को जन्मे। वे एक किसान परिवार से आते हैं। किसान भी ऐसे जिनके पास कुछ खास ज़मीन नहीं है। इनके पिता का देहान्त होने के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी इनकी माता के कंधे के ऊपर आ गई थी। संजीव कुमार भी बचपन में स्कूल की पढ़ाई के दौरान बकरी, गाय-बैल आदि मवेशी चराकर अपनी माता की मदद करते थे। लेकिन साधारण परिवार में होते हुए संजीव कुमार ने पढ़ाई को तहरीज दी। संजीव कुमार बचपन में ही ये बात समझ गए थे कि उनके पास एक शिक्षा ही ऐसा माध्यम है जिसके सहारे वह खुद को और अपने को इस गरीबी से निकाल सकते हैं। पिता के देहांत के बाद एक समय था जब स्कूल जाने के लिए बड़ी मुश्किल से उनकी माता और भाई फीस व पढ़ाई के खर्चे लिए पैसे देते थे, उनके भाइयों व माता को संजीव के उपर पूरा विश्वाश था कि एक दिन संजीव कुछ कर अपना नाम रोशन जरूर करेगा, लेकिन जिंदगी के इन्हीं अभावों ने उन्हें अंदर से मजबूत कर दिया और उस मुकाम तक पहुंचा दिया।

संजीव कुमार बताते हैं कि, “मैं गांव में रहता था, खेती करता था, मवेशियों को चराता था। लेकिन जब भी समय मिला चाहे खेती की रखवाली करते हुए या फिर मवेशियों की चराई के साथ, पढ़ाई करने बैठ जाता था। मेरे लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं था लेकिन मुझे पता था कि यहां से आगे जाने की, बड़ा बनने की असंख्य संभावनाएं हैं।”

संजीव का ध्यान हमेशा सिर्फ पढ़ाई में रहा। उन्होंने दसवीं व बाहरवीं तक की पढ़ाई अपने ही गांव के सरकारी स्कूल से की। मास्टर डिग्री करने बाद दिल्ली में बतौर वोकेशनल टीचर की नौकरी के सहारे उन्होंने अपने परिवार तंगहाली से बाहर निकाला। लेकिन संजीव कुमार ने अब बड़े सपने देखना शुरू कर दिया और रुकने की जगह उन्होंने आगे बढ़ने की ठानी। वह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे। संजीव और उनके घर के जैसे हालत थे उस हिसाब से उन्होंने कभी अपना लक्ष्य बड़ा नहीं रखा। उनके सामने जो भी परीक्षाएं आती गईं वे उन सभी में सफल होते गए। फिलहाल उनके लिए जरूरी था एक अच्छी नौकरी प्राप्त करना जिससे परिवार को आर्थिक सहायता मिल सके। संजीव कुमार को सरकारी नौकरी का ऐसा चस्का लगा कि वो हर प्रतियोगिता परीक्षा का फार्म भरने लगे। वोकेशनल टीचर की नौकरी करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी तथा एमए की डिग्री प्राप्त कर ली। इसी के साथ परीक्षाएं देने का सिलसिला भी चलता रहा। उन्होंने CET व दो बार हिमाचल टेट की परीक्षा भी दी, जिसमें उन्होंने उन दोनों परीक्षाओं को भी क्लियर कर लिया था। पर वो इतने में रूकने वाले नहीं थे उन्होंने अब उन्होंने “रेगुलर सरकारी नॉकरी पाकर करियर बनाने के बारे में सोचा। उनका यह लक्ष्य बन गया कि उन्हें बेहतर से बेहतर पद पाना है। इसी दौरान उनके अंदर दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (Delhi Subordinate Services Selection Board) की परीक्षा पास करने का जुनून जागा।

संजीव सच्ची लगन व मेहनत कई युवाओं के लिए प्रेरणा

संजीव कुमार ने दिल्ली के महिपालपुर सीनियर सेकेंडरी स्कूल के वोकेशनल बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ खुद की पढ़ाई भी जारी रखी। इसके बाद वह खुद से ही अपनी तैयारी करते रहे। हालांकि,नौकरी के साथ-साथ इतनी कठिन परीक्षा के लिए खुद से तैयारी करना आसान नहीं था मगर संजीव कुमार ने अपनी एकाग्रता से इसे आसान बना लिया। उनकी सच्ची लगन और मेहनत कई युवाओं के लिए प्रेरणा है। संजीव कुमार की इस उपलब्धि पर पध्रथला गोला क्षेत्र में खुशी की लहर है। संजीव कुमार ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता, गुरूजनों व सगे भाइयों के साथ धर्मपत्नी को दिया है।

#Special_Enspirational_Story

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *