धर्मशाला में चल रही राम कथा की अंतिम संध्या में हुआ चित्रकूट में भगवान राम के बनवास का वर्णन

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आवाज ए हिमाचल 

22 जनवरी।श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर कैंट रोड धर्मशाला में चल रही राम कथा की अंतिम संध्या पर अपने व्याख्यान में कथावाचक भगवतरसिक पं शिव कुमार ने चित्रकूट में भगवान राम के बनवास का सुंदर वर्णन किया। वहां पर भरत जी का प्रभु की खडांऊ को अपने सर पर रख कर मातओं और गुरूजनों सहित अयोधया वापिस आकर श्री राम जी के प्रतिनिधि के रुप में नंदीग्राम में कुटिया बना कर भूमि आसन पर रहना, वहां शत्रुघ्न का भी रहना , जयंत का माता सीता के पैर में कौवे के रुप में चौंच प्रहार करना और प्रभु द्वारा एक तिनके उसके उपर छोडना,फिर तीनो लोकों में उसका उस तिनके से बचते हुए भागना, वहां किसी प्रकार की सहायता न मिलने पर पुन: प्रभु श्रीराम के चरणों में गिर जाना और अपनी एक आंख खो देने का प्रसंग सुनाया।प्रभु श्रीराम अब पंचवटी छोड़कर आगे अत्रि ऋषि के आश्रम में जाते हैं,वहां माता अनसुया जी माता सीता को उपदेश करती हैं और उन्हे एक दिव्य वस्त्र भेट करती हैं, आगे प्रभु वन में रहने वाले अनेक ऋषि मुनियों से मिलते हुए एक जगह मानव हड्डियों का बडा ढेर देखकर उनसे पूछते हैं की यह क्या है, तो मुनिगण उन्हे बताते हैं की यह ढेर राक्षसों द्वारा खाए गए ऋषिगण की हड्डियों का है। राक्षस यहां उन्हे बहुत संताप देते हैं ल,तो प्रभु बहुत व्यथित होकर प्रतिज्ञा करते हैं।निशिचर हिन करुं मही भुज उठा प्रण किनह, ऋषि मुनियों के आश्रम में जाय जाय सुख दीनह, मैं प्रण करता हुं की मैं इस पृथ्वी को इन राक्षसों से मुक्त कर दूंगा, ऐसा कह कर प्रभु आगे जंगल में जाकर अगस्त मुनि से मिलते हैं,उनके द्वारा प्रभु को एक दिव्यासत्र प्रदान किया जाता है ळ,फिर आगे पंचवटी में अपना कुछ समय व्यतीत करने के लिए रूकते हैं,वहां पर सूर्पनखा से सामना होता है।

उसकी उद्दंडता से कुपित होकर लक्ष्मण उसके नाक कान काट देते हैं,फिर खर दूषण नाम के राक्षसों का बध प्रभु करते हैं और फिर सूर्पनखा अपने भाई लंकापति रावण के पास जाकर अपने साथ हुए प्रसंग को बड़ा चडा कर सुनाती है। रावण क्रोधित होता है और मारिच को मायावी सोने का मृग बनने को कहता है और पंचवटी में भेज कर स्वयं साधू भेष में अपनी मायावी शक्ति से माता सीता का अपहरण कर लेता है ,फिर गिद्ध राज जटायु कैसे रावण से भिड जाते हैं। रावण अपनी तलवार से उनके पंख काट देता है।प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण रोते बिलखते सीता माता की खोज में जंगल में भटक रहे हैं,तो वहां उन्हे घायल जटायु मिलते हैं उनका संवाद होता है और उन्ही से पता चलता है की लंकापति रावण ही माता सीता का अपहरण करके उन्हे आकाश मार्ग से दक्षिण की और लंकापुरी लेकर गया है।भगवान राम की गोदी में ही जटायु प्राण त्याग देते हैं।यह सभी प्रसंग बहुत ही मार्मिक और ओजपूर्ण वाणी में संगीत और काव्य के माध्यम से आज व्यासजी द्वारा सुनाए गए।

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