आवाज़ ए हिमाचल
जीडी शर्मा, राजगढ़
23 फरवरी। राजगढ़ विकास खंड के दाहन पंचायत के सवाणा गांव के देवेंद्र सिंह चौहान निजी नौकरी से वीआरएस लेकर इन दिनों जैविक खेती बागवानी में अच्छा आर्थिक लाभ कमा रहे हैं और अभी तक लगभग 400 लोगों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं।
मिडिया से विशेष बातचीत में देवेंद्र ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1996 से 2009 तक आशयर कंपनी में निजी नौकरी की और उसके बाद उन्होंने घर आकर कृषि बागवानी करने की सोची, मगर यहां किसानों और बागवानों द्वारा रासायनिक खादों एवं दवाइयों के अधिक प्रयोग को देखकर वे हैरान हो गए।
चौहान के अनुसार किसान अपने खेतों में जितनी रासायनिक खादों एवं दवाइयों का प्रयोग करते थे वह कृषि विभाग व कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बताई गई मात्रा से भी काफी अधिक थी फिर उन्होंने धीरे-धीरे इन रासायनिक खादों एवं दवाइयों का प्रयोग कम करनी की सोची और इसी बीच उन्होंने भारतीय किसान संघ के सौजन्य से राज्यस्थान के भीलवाडा जिले में पहली बार 3 दिवसीय जैविक खेती का प्रशिक्षण पदम श्री हुकम चंद पाटीदार पदम श्री रतन डागा व कृषि विश्वविद्यालय जौधपूर प्रोफेसर अरुण से लिया और घर आकर जैविक खेती आरंभ की। पहले इसका प्रयोग नकदी फसलों लहसुन, मटर आदि पर किया। उन्होंने धीरे धीरे रासायनिक रासायनिक खादों एवं दवाइयों का प्रयोग करना कम कर दिया और लगभग 3 सालों के बाद पूर्ण रूप से बंद दिया तथा 2015 में अपने खेतों में पूरी तरह से जैविक खेती करनी आंरभ कर दी। 2018 में चौहान ने प्राकृतिक खेती का 7 दिवसीय प्रशिक्षण शिमला जिले के कुफरी में लिया, जहां पर पद्यश्री सुभाष पालेकर ने उन्हें जैविक खेती की पूरी जानकारी दी।
कृषि के बाद उन्होंने बागवानी में जैविक खेती का प्रयोग करने की सोची और अपनी बंजर भूमि को समतल किया और उसमें 600 सेब के पौधे लगाये और उसमें किसी भी प्रकार रासायनिक खाद व दवाइयों का प्रयोग नहीं किया। लगभग 4 सालो के बाद साल 2021 में उनके बगीचे मे पहली फसल आई और लगभग 150 पेटी सेब निकली जिसे उन्होंने जयपूर की सब्जी मंडी भेजा और 165 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिका।
देवेंद्र चौहान अब कृषि विभाग के जैविक खेती के मास्टर ट्रनेर हैं और अभी तक लगभग 400 लोगों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं और किसानों और बागवानों को जैविक खेती अपनाने के लिए जागरुक करते हैं। चौहान का कहना है कि जैविक खेती से कृषि व बागवानी उत्पादन में किसी प्रकार की कमी नहीं आती, बल्कि कृषि व बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ती है।