तीर्थन घाटी में पर्यटन के प्रभावों पर होगा शोध

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आवाज़ ए हिमाचल

अभिषेक मिश्रा,बिलासपुर
03 जनवरी।तीर्थन घाटी पर्यटन की दृष्टि से आज अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। हर वर्ष यहां पर्यटन की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। तीर्थन घाटी बढ़ती पर्यटन गतिविधियों तथा विश्व धरोहर, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से भारत के कोने कोने में ही नहीं अपितु विश्व मानचित्र में स्थान हासिल कर चुकी है।

तीर्थन घाटी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में तहसील बंजार में स्थित है। इस घाटी का नाम यहाँ बहने वाली पवित्र तीर्थन नदी के नाम से अस्तित्व में आया। यह घाटी रूरल टूरिज्म, साहसिक पर्यटन गतिविधियों जैसे कि ट्रैकिंग, कैंपिंग, रिवर क्रोसिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, रेप्पेल्लिंग, एंगलिंग इत्यादि तथा अपनी खूबसूरती के साथ साथ अच्छे पर्यावरण तथा वर्ल्ड हेरिटेज साइट, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के लिए जानी जाती है।

नेशनल पार्क को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किए जाने के बाद इस घाटी में पार्क तथा वहां रहने वाले जीव जन्तुओं और जड़ी बुटियों का अध्य्यन करने आने वाले शोधकर्ताओं के साथ साथ आज के समय में घूमने आने वाले पर्यटकों की रुचि बड़ी है। पर्यटन गतिविधियों के बढ़ने के साथ साथ यहाँ पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के सम्बन्ध में होटल, गेस्ट हाउस, कॉटेज,कैम्प साइट आदि का निर्माण होना शुरू हुआ है।

पर्यटन को व्यवसाय के रूप में देखते हुए घाटी के लोगों ने तथा बाहर से व्यवसाय करने आये विभिन्न व्यवसायियों ने घाटी में अपने अपने स्तर पे व्यवसाय शुरू करना आरंभ कर दिया है, जिसमे एडवेंचर पर्यटन, कैप्मिंग, रूरल टूरिज्म तथा एंगलिंग प्रमुख हैं।


इन सारी पर्यटन की गतिविधियों के होने के कारण जो समाज और पर्यटन की आर्थिकी पर जो प्रभाव पड़ रहे हैं उनके आकलन करने के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पर्यटन शिक्षा विभाग, जिसे प्रोफेसर चन्द्र मोहन परशीरा निर्देशित कर रहे हैं, के तत्वधान में पुनीत सिंह जो कि राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर में बतौर पर्यटन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हैं, वो एक विस्तृत शोध करने वाले हैं इस शोध को करने के बाद में तीर्थन घाटी में पर्यटन की क्या रूपरेखा होनी चाहिए और इसके दुष्प्रभावों से किस प्रकार से बचना चाहिए और इसके आर्थिक दृष्टिकोण से पर्यटन और कितना अधिक लाभकारी यहां के लोगों के लिए हो सकता है, इन सब बातों को जानने या खोजने के लिए पीएचडी स्तर का पहली बार शोध कार्य इस घाटी में हो रहा है।

इस शोध कार्य की समीक्षा विधिवत रूप से आरडीसी की मीटिंग में हो चुकी है और वहां से मान्यता मिलने के बाद इस कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया गया है, पुनीत ने बताया कि वह स्वयं इसी स्थान के रहने वाले हैं और इस स्थान में बहुत सारी पर्यटन की गतिविधियां अनियंत्रित और बिना योजनाओं के चलने के कारण आने वाले समय में समाज पर और समाज की आर्थिकी पर कहीं इसके परिणाम विपरीत ना हो इसलिए उन्होंने इस शोध कार्य को हाथ में लिया है और इस शोध कार्य कोआरंभ कर दिया है और अगले चरण में घाटी में एक सेमिनार का आयोजन किया जाएगा जिसमें स्थानीय लोगों से भिन्न भिन्न प्रकार से उनकी समस्याओं और संभावनाओं के बारे में पूछा जाएगा और उन्हीं समस्याओं और संभावनाओं के आधार पर जो प्रश्नावली शोध कार्य के लिए निर्मित होगी यह संभवतः देश का पहला ऐसा शोध कार्य होगा जिसमें शोध की प्रश्नावली को जो वहां के रहने वाले लोग हैं और जिनकी पर्यटन में और सामाजिक स्तर पर भिन्न भिन्न प्रकार की भूमिकाएं हैं उनको ध्यान में रखते हुए और उन्हें विश्वास में लेते हुए और उन्हीं के अनुभवों से ही इस प्रश्नावली का निर्माण किया है, इसी प्रश्नावली के आधार पर बहुत सारा आगे का जो शोध कार्य है वो किया जाएगा। आगे आने वाले समय में जब शोध कार्य पूरा होगा ! इस शोध कार्य की रिपोर्ट को टूरिज्म विभाग को,भारत सरकार को तथा हिमाचल सरकार को सौंपा जाएगा साथ ही घाटी की भिन्न-भिन्न पंचायतों को भी शोध कार्य का परिणाम तथा भिन्न-भिन्न सुझावों को सौंपा जाएगा ताकि आगे आने वाले समय में यहां एक अच्छे प्रकार से और एक योजनाबद्ध तरीके से हम लोग पर्यटन को संचालित कर पाएं।

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