आवाज़ ए हिमाचल
27 मार्च। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने तबादले से जुड़े मामले में अदालती प्रक्रिया के दुरुपयोग पर प्रार्थी अध्यापिका को 50,000 रुपये की कास्ट लगाई। प्रार्थी को चार सप्ताह में हाईकोर्ट की एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन में राशि जमा करानी होगी। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश चंद्रभूषण बारोवालिया की खंडपीठ ने अर्चना राणा की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि शिक्षक नैतिकता व अनुशासन की नींव रखते हैं। यदि ऐसी गतिविधियों को नियंत्रित करने वालों की ओर से कोताही बरती जाती है तो सभी आशाएं नष्ट होना तय है।
प्रार्थी को पिछले साल 11 दिसंबर को उसके मौखिक अनुरोध पर राजकीय हाई स्कूल द्रम्मण से हाई स्कूल जोल में समायोजित किया था। हाई स्कूल जोल राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल भाली जिला कांगड़ा के प्रधानाचार्य के नियंत्रण में है। सरकार के अनुसार जब प्रार्थी जोल में ज्वाइनिंग देने पहुंची तो उस समय प्रधानाचार्य उच्च शिक्षा उपनिदेशक कांगड़ा के कार्यालय में आधिकारिक ड्यूटी पर थे।प्रार्थी ने पति के साथ परिसर में बिना अनुमति प्रवेश किया, आधिकारिक टेबल लॉकर खोला और शिक्षक उपस्थिति रजिस्टर में हाजिरी दर्ज कर दी। उसके शिक्षक पति ने इस पर नोटिंग कर दी। इसी उपस्थिति रिपोर्ट के आधार पर जोल स्कूल में सेवा जारी रखने का आग्रह करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सरकार के जवाब के अनुसार 14 दिसंबर, 2020 को राजकीय हाई स्कूल घुंड जिला शिमला से जोगिंदर सिंह को जोल स्थानांतरित किया गया। 70 फीसद दिव्यांग जोगिंदर को प्रार्थी के स्थान पर भेजा गया। सुनवाई के दौरान प्रार्थी पति के साथ हाईकोर्ट में पेश हुई और स्वीकार किया कि उसने उपस्थिति रिपोर्ट खुद बनाई थी और पति ने नोटिंग की थी।
कोर्ट ने कहा आचरण खेदपूर्ण
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके पति का आचरण खेदपूर्ण है, इसलिए हल्के में नहीं लिया जा सकता है। उन्होंने प्रिंसिपल के कार्यालय में प्रवेश करके कानून हाथ में लिया। बिना अनुमति आधिकारिक टेबल लॉकर खोला और रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज की। इसलिए दोनों बड़े कदाचार के लिए आरोपपत्र के लायक हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत में स्वच्छ इरादे से नहीं आया। अनुचित लाभ पाने के लिए झूठा दावा किया है और न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया।
शिक्षिका व पति के खिलाफ जांच के आदेश
न्यायालय ने कहा कि प्रार्थी की तरह कुछ लोग न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग करते हैैं। याद रखना होगा कि न्यायालय की कार्यवाही पवित्र है और फर्जी मु्कदमों से प्रदूषित नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने इस टिप्पणी को प्रार्थी और उसके पति की गोपनीय रिपोर्ट में दर्ज करने के आदेश भी दिए। शिक्षा विभाग को प्रार्थी और उसके पति के खिलाफ विभागीय जांच करने के आदेश दिए। मामले की जांच 30 सितंबर, 2021 तक पूरी करने के आदेश जारी किए।