आवाज़ ए हिमाचल
पालमपुर। भारत सरकार ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण लेते हुए सभी डाक्टरों को पर्ची पर केवल जेनरिक दवाई लिखने को कहा है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा कि वह 10 साल से इस निर्णय का इंतजार कर रहे थे। ऐसे निर्णय कई बार हुए, परंतु विदेशी बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों के दबाव में आज तक लागू नही हो सके। उन्होंने कहा कि वह 12 वर्ष पहले संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष थे। पूरा एक वर्ष कमेटी ने जेनरिक और ब्रांडेड दवाई के विषय पर गहरा अध्ययन किया। 2013 में कमेटी ने सरकार को महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट दी और वह समिति के कुछ सदस्यों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली। उन्होंने कहा कि सरकार का एक पंक्ति का नियम देश के करोड़ों गरीबों को सस्ती दवाई दिला सकता है।
सूरत की एक जनसभा में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि सरकार ऐसा नियम बना रही है कि हर डाक्टर रोगी की पर्ची पर केवल जेनरिक दवाई लिखेगा। यह घोषणा कई वर्षों तक लागू नहीं हुई। जब कोई कंपनी लंबा शोध करके पहली बार दवाई बनाती है, तो भारत के कानून के मुताबिक 20 वर्ष तक उसका पेटेंट होता है और कोई भी कंपनी उस दवाई को नहीं बना सकती। इस दवाई को ब्रांडेड कहा जाता है, परंतु 20 वर्ष के बाद पेटेंट समाप्त होने पर उसी दवाई को कोई और कंपनी बना सकती है। इसे जेनरिक दवाई कहते है। भारत जेनरिक दवाई बनाने में विश्व में अग्रणी है। शांता कुमार ने कहा कि विदेशी कम्पनियों की कमीशन के कारण भारत के डाक्टर रोगी की पर्ची पर सस्ती जेनरिक दवाई नहीं लिखते। इसी कारण ब्रांडेड दवाई बिकती है। ब्रांडेड दवाई के मुकाबले पर जेनरिक दवाई आधे से भी कम मूल्य में मिलती है। देश का दुर्भाग्य है कि इस प्रकार विदेशी कंपनियों को लूट की छूट मिली हुई है।